बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि यदि किसी गवाह की गवाही विश्वसनीय और सुसंगत है, तो उसे केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि वह पीड़ित पक्ष से जुड़ा है। इस आधार पर हाईकोर्ट ने बेमेतरा जिले के रनबोद गांव में हुए हत्याकांड के चार दोषियों की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी है।
भूमि विवाद में तीन लोगों की हुई थी हत्या
29 जनवरी 2020 को भूमि विवाद को लेकर हुए इस निर्मम हत्याकांड में अभियुक्त केजूराम साहू (72), जोहान साहू (35), मोहन साहू (37) और विशाल साहू (36) को दोषी ठहराया गया था। इन चारों ने मिलकर संतु साहू, निर्मला साहू और खुबन साहू की हत्या कर दी थी।
बेमेतरा के सत्र न्यायालय ने 24 फरवरी 2024 को उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 302 सहपठित धारा 34 के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसके अलावा, कोमल साहू की हत्या के प्रयास के लिए धारा 307 के तहत 10 वर्ष की कठोर कारावास की सजा भी दी गई थी।
अभियुक्तों ने हाईकोर्ट में दी चुनौती
सजा के खिलाफ अभियुक्तों ने हाईकोर्ट में अपील दायर करते हुए तर्क दिया कि मामले के मुख्य गवाह मृतकों के ही परिजन थे, इसलिए उनकी गवाही को पक्षपाती मानकर खारिज किया जाना चाहिए।
इसके अलावा, बचाव पक्ष ने यह भी दलील दी कि हत्या पूर्व नियोजित नहीं थी, बल्कि झगड़े के दौरान हुई थी। उन्होंने इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 300 के अपवाद 4 के तहत ‘गैर-इरादतन हत्या’ मानने की अपील की।
राज्य सरकार ने रखे ठोस तर्क
राज्य सरकार की ओर से शासकीय अधिवक्ता संघर्ष पांडे ने अदालत में तर्क रखा कि अभियुक्तों ने कुल्हाड़ी और डंडों जैसे घातक हथियारों से हमला किया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि हत्या पूरी तरह पूर्व नियोजित थी।
इसके समर्थन में उन्होंने सीसीटीवी फुटेज, फोरेंसिक रिपोर्ट और स्वतंत्र गवाहों की गवाही का हवाला दिया, जो अभियोजन पक्ष के दावे को मजबूत करते हैं।
हाईकोर्ट ने नहीं बदली सजा
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने सभी साक्ष्यों की गहराई से समीक्षा करने के बाद सत्र न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा और अभियुक्तों की सजा में कोई बदलाव करने से इनकार कर दिया।