बिलासपुर, 22 मार्च: शिक्षाकर्मी ग्रेड-3 की भर्ती में हुए घोटाले के मामले में आरोपी तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत वाड्रफनगर की अपराध पुनरीक्षण याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है। हाईकोर्ट ने निचली अदालत को सुनवाई जारी रखने का निर्देश दिया है और पूर्व में दी गई किसी भी अंतरिम राहत को समाप्त कर दिया गया है।

भ्रष्टाचार का मामला 

विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) बलरामपुर ने 27 जून 2018 को इस मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(2) और आईपीसी की धारा 120-बी के तहत आरोप तय किए थे। आरोपी ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की एकल पीठ ने सुनवाई के बाद याचिका खारिज कर दी।

वाड्रफनगर जनपद CEO रहने के दौरान भर्ती 

बिलासपुर के सोनगंगा कॉलोनी निवासी सी.एल. जायसवाल, जो वर्तमान में आदिवासी विकास विभाग में सहायक आयुक्त हैं, वर्ष 1996 में सरगुजा जिले के बाहूफ नगर जनपद पंचायत में मुख्य कार्यपालन अधिकारी के रूप में कार्यरत थे।

वर्ष 1998 में शिक्षाकर्मी ग्रेड-3 के रिक्त पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई। आरोप है कि जायसवाल और अन्य अधिकारियों ने अनियमितताएं कर अपने पसंदीदा उम्मीदवारों को बिना योग्यता के चयनित कर दिया। कई रिश्तेदारों को भी नियमों के खिलाफ भर्ती में शामिल किया गया।

जांच में अनियमितताओं का खुलासा

भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ियों की शिकायत मिलने पर सरगुजा के तत्कालीन कलेक्टर ने चार सदस्यीय जांच समिति गठित की। जांच में भर्ती प्रक्रिया में भ्रष्टाचार की पुष्टि हुई। इसके बाद, एसीबी (आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो) और ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध शाखा) बिलासपुर ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की।

जांच में यह पाया गया कि:

  • आरोपी और चयन समिति के 9 सदस्यों ने निष्पक्ष चयन प्रक्रिया का पालन नहीं किया।
  • साक्षात्कार में अंकों की हेरफेर की गई।
  • ओबीसी और एससी वर्ग की सूची में बदलाव कर मनचाहे उम्मीदवारों को चयनित किया गया।
  • रिश्वत लेकर उम्मीदवारों को नियुक्त किया गया, जबकि योग्य उम्मीदवारों को बाहर कर दिया गया।
  • कई अभ्यर्थियों ने बयान दिया कि रिश्वत न देने के कारण उन्हें चयन प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया।

झूठा फंसाने की दी थी दलील 

चार्जशीट दाखिल होने के बाद विशेष न्यायालय ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(2) और आईपीसी की धारा 120-बी के तहत आरोप तय किए थे।

हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान आरोपी ने तर्क दिया कि वह झूठा फंसाया गया है। उसने दावा किया कि वह पहले ही भर्ती प्रक्रिया रोकने का आदेश दे चुका था और बाद में उसका तबादला कर दिया गया।

लेकिन, राज्य सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि:
  • आरोपी चयन समिति का पदेन अध्यक्ष था और रिश्वत लेकर नियुक्तियां कीं।
  • दस्तावेजों में हेरफेर कर मनचाहे अभ्यर्थियों को फायदा पहुंचाया गया।

कोई अंतरिम राहत नहीं मिली

सभी तथ्यों और साक्ष्यों पर विचार करने के बाद, हाईकोर्ट ने आरोपी की याचिका खारिज कर दी और निचली अदालत को मामले की सुनवाई जारी रखने का आदेश दिया। इससे साफ है कि भ्रष्टाचार के इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया आगे बढ़ेगी और आरोपी को किसी भी प्रकार की अंतरिम राहत नहीं मिलेगी।

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