बिलासपुर। हसदेव अरण्य के संरक्षण के लिए चल रहे आंदोलन के तहत बिलासपुर में हसदेव बचाओ आंदोलन के सदस्यों ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नाम एक ज्ञापन जिलाधीश को सौंपा। आंदोलनकारियों ने मांग की है कि फर्जी ग्रामसभा के नकली दस्तावेजों के आधार पर जो वनभूमि डायवर्सन की स्वीकृति कोयला कंपनी द्वारा ली गई है, उसे तुरंत रद्द किया जाए।

ज्ञापन सौंपने वालों में नंद कश्यप, महेश श्रीवास, जसविंदर पाल सिंह, सुरेन्द्र वर्मा, श्याम मूणत कौशिक, ममता गुप्ता, असीम तिवारी, महमूद हसन और प्रथमेश सविता शामिल थे। सभी ने एक सुर में हसदेव अरण्य के विनाश को रोकने के लिए मुख्यमंत्री से तत्काल हस्तक्षेप की अपील की।

ज्ञापन में बताया गया है कि हसदेव अरण्य, जिसे “छत्तीसगढ़ के फेफड़े” के नाम से जाना जाता है, जैव विविधता से भरपूर और वन्यजीवों का महत्वपूर्ण आश्रय स्थल है। यह क्षेत्र कोयला खनन के चलते विनाश के कगार पर है। भारतीय वन्यजीव संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, हसदेव अरण्य में कोयला खनन से अपरिवर्तनीय क्षति होगी, और इस क्षेत्र को खनन के लिए ‘नो-गो एरिया’ घोषित किया जाना चाहिए।

इसके बावजूद, परसा कोल ब्लॉक से प्रभावित ग्रामसभाओं के सतत विरोध के बावजूद, फर्जी दस्तावेजों के आधार पर वन भूमि डायवर्सन की स्वीकृति ली गई। आंदोलनकारियों ने इस फर्जी ग्रामसभा की जांच की मांग की है और कहा है कि स्थानीय प्रशासन और राज्यपाल को कई बार ज्ञापन दिए जाने के बावजूद, अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

ज्ञापन में आगे कहा गया कि हसदेव अरण्य के आदिवासी समुदाय पिछले एक दशक से अपने संविधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए शांतिपूर्ण संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद उनकी आवाज को नजरअंदाज किया जा रहा है। हसदेव अरण्य के विनाश को रोकना पूरे छत्तीसगढ़ के पर्यावरण और आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए अत्यावश्यक है। आंदोलनकारियों ने मुख्यमंत्री से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है, ताकि हसदेव अरण्य को बचाया जा सके।

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