बिलासपुर। छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के नेता और मरवाही के पूर्व विधायक अमित जोगी द्वारा दाखिल याचिका हाई कोर्ट ने खारिज कर दी है। याचिका में जोगी ने वर्ष 2019 में गौरेला थाने में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर और बाद में दायर आरोप पत्र को निरस्त करने की मांग की थी। यह अपराध भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 465, 467, 468 और 471 के अंतर्गत दर्ज हुआ था। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने याचिका खारिज की है।
चुनावी नामांकन में गड़बड़ी का आरोप

बीजेपी की समीरा पैकरा ने चुनाव में नामांकन के समय गलत जन्म स्थान बताने को लेकर तत्कालीन बिलासपुर जिले के गौरेला थाने में अपराध पंजीबद्ध कराया गया था।  पैकरा मरवाही विधानसभा चुनाव 2013 में अमित जोगी से हार गईं थीं। उसके बाद उन्होंने हाई कोर्ट में अमित जोगी के खिलाफ चुनाव याचिका दायर कर अमित की नागरिकता को चुनौती दी थी। इसमें कहा गया था कि अमित जोगी ने नामांकन के समय अपने जन्म स्थान का गलत प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया है।

समीरा पैकरा की शिकायत के अनुसार अमित जोगी के दस्तावेजों में अमेरिका के टेक्सास, एमपी के इंदौर और मरवाही के सारबहरा, -3 अलग-अलग जगहों में जन्म स्थान का होना बताया गया है। कोर्ट में अमित जोगी ने अपने अमेरिका में जन्म होने की बात को स्वीकार किया था। अमित ने मरवाही की जनता को छला है. लंबे समय की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने समीरा पैकरा की याचिका खारिज कर दी थी।
इसके बाद समीरा पैकरा ने अमित जोगी के जन्म स्थान के मामले को ही लेकर गौरेला थाने एफआईआर दर्ज कराई।  इसके बाद अमित जोगी ने एक वीडियो जारी कर कहा था कि उनके खिलाफ एफआईआर साजिश के तहत दर्ज कराई गई है।

FIR में हस्तक्षेप से इनकार

अमित जोगी ने इस एफआईआर और आरोप पत्र को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उनका तर्क था कि इस मामले में पहले चुनाव याचिका भी दायर की गई थी, जिसे जनवरी 2019 में कोर्ट ने खारिज कर दी थी। इसके कुछ ही दिनों बाद, 3 फरवरी 2019 को गौरेला थाने में नई शिकायत दर्ज कराई गई, जबकि इसमें कोई नया तथ्य प्रस्तुत नहीं किया गया।

दूसरी ओर, राज्य सरकार की ओर से उप महाधिवक्ता शशांक ठाकुर ने कोर्ट में यह कहा कि इस मामले में पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया है और जांच के बाद आरोप पत्र दाखिल किया गया है।

हाई कोर्ट ने कहा कि एफआईआर या आरोप पत्र को रद्द करने का अधिकार केवल असाधारण मामलों में ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए और सामान्य रूप से कोर्ट को संज्ञेय अपराधों की जांच में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here