बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में शिक्षा के अधिकार (आरटीई) के तहत ईडब्ल्यूएस और बीपीएल वर्ग के बच्चों को सही तरीके से एडमिशन न मिलने के मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और शिक्षा विभाग से जवाब मांगा है। कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा है कि नए नियमों के कारण आरटीई की सीटें क्यों घटीं, एडमिशन में गड़बड़ी क्यों हुई और फर्जी एडमिशन के मामलों पर क्या कार्रवाई हुई?

बड़े निजी स्कूलों पर गंभीर आरोप

याचिका में दावा किया गया है कि बड़े निजी स्कूल जानबूझकर आरटीई के तहत आने वाले आवेदनों को निरस्त कर रहे हैं। इसके बाद ये स्कूल डोनेशन और मोटी फीस लेकर सीटें ओपन भर्ती के तहत भर रहे हैं। बताया गया कि बड़े स्कूलों में सिर्फ 3% सीटों पर ही आरटीई के तहत दाखिले हो रहे हैं, जबकि पिछले एक साल में सवा लाख कम एडमिशन हुए हैं

कोर्ट ने मांगी पूरी जानकारी

हाईकोर्ट ने सरकार और शिक्षा विभाग से पूछा है कि:

  1. पिछले वर्षों में आरटीई के 25% आरक्षित सीटों पर कितने बच्चों को एडमिशन दिया गया?
  2. कितनी सीटें खाली रहीं और उन सीटों को कैसे भरा गया?
  3. अगर खाली सीटों को ओपन आधार पर भरा गया तो उसके लिए कौन से नियम अपनाए गए?

2012 से चल रहा मामला, स्कूलों ने नहीं माना आदेश

यह मामला 2012 से हाईकोर्ट में लंबित है2016 में हाईकोर्ट ने विस्तृत निर्देश जारी किए थे, लेकिन निजी स्कूलों ने इन आदेशों को सही से लागू नहीं किया। इसको लेकर भिलाई के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता सीवी भगवंत राव ने एडवोकेट देवर्षि सिंह के माध्यम से जनहित याचिका दायर की। पहले हुई सुनवाई में चार दर्जन से अधिक निजी स्कूलों को पक्षकार बनाया गया था

अब हाईकोर्ट के नए निर्देश के बाद सरकार और शिक्षा विभाग को इस मामले में पूरी जानकारी पेश करनी होगी। अगली सुनवाई में यह साफ होगा कि आरटीई के तहत बच्चों को उनके अधिकार मिल रहे हैं या नहीं

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