राज्य स्तरीय परामर्श समिति की कार्यशाला
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा ने विकलांग बच्चों के अधिकारों की रक्षा पर जोर देते हुए कहा कि समाज का कर्तव्य है कि वह इनको गरिमामय जीवन और सुरक्षित माहौल प्रदान करे। उच्च न्यायालय के किशोर न्याय समिति, छत्तीसगढ़ राज्य न्यायिक अकादमी और छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राज्य स्तरीय परामर्श समिति की नौवीं कार्यशाला में न्यायमूर्ति सिन्हा ने विकलांग बच्चों के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर विचार व्यक्त किए और सभी संबंधित पक्षों से इन बच्चों की सुरक्षा और समावेशी विकास के लिए मिलकर काम करने की अपील की।
मुख्य न्यायाधीश सिन्हा ने अपने उद्घाटन भाषण में विकलांग बच्चों के समक्ष आने वाली चुनौतियों का उल्लेख किया। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक समावेशन की कठिनाइयों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि समाज को इन बच्चों की गरिमा और सुरक्षा की जिम्मेदारी उठानी चाहिए। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर बच्चे को गरिमामय जीवन जीने का अधिकार है, इस पर जोर देते हुए कहा कि हमें विधायी प्रवर्तन, समावेशी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में सुधार के लिए प्रयास करना चाहिए।
सामाजिक सुरक्षा के उपाय करें
न्यायमूर्ति सिन्हा ने विकलांग बच्चों के लिए सामाजिक सुरक्षा उपायों की आवश्यकता पर भी बल दिया। महात्मा गांधी की उक्ति, “किसी भी समाज का असली मापदंड यह है कि वह अपने सबसे कमजोर सदस्यों के साथ कैसा व्यवहार करता है,” को उद्धृत करते हुए उन्होंने सभी हितधारकों और विभागों के बीच सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती के शब्दों का हवाला देते हुए कहा, “विकलांग व्यक्तियों के मानवाधिकार उतने ही पवित्र और अविभाज्य हैं जितने कि किसी अन्य व्यक्ति के।”
गर्भपात के अधिकार और कानूनी सहायता
न्यायमूर्ति सिन्हा ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता की आवश्यकता पर भी चर्चा की। उन्होंने बलात्कार पीड़ितों, विशेष रूप से नाबालिग और मानसिक रूप से विकलांग महिलाओं, के लिए गर्भपात की प्रक्रिया को सरल और शीघ्र सुनिश्चित करने के लिए सभी संबंधित पक्षों के बीच समन्वय पर जोर दिया। इस अवसर पर एक फ्लिप चार्ट भी जारी किया गया, जिसमें विभिन्न हितधारकों की भूमिकाओं का दस्तावेजीकरण किया गया था।
कलात्मक प्रतिभाओं का सम्मान
इस आयोजन में विकलांग बच्चों की कलात्मक प्रतिभाओं का भी प्रदर्शन किया गया। इन बच्चों की पेंटिंग्स, जूट बैग और हस्तशिल्प प्रदर्शित किए गए, जो उनके उत्साह और रचनात्मकता को दर्शा रहे थे। इस प्रदर्शनी ने इन युवा कलाकारों को प्रेरणा और प्रोत्साहन देने का काम किया। मुख्य न्यायाधीश ने स्वयं इन कलाकारों से मुलाकात की और उनकी प्रशंसा की।
तकनीकी सत्र और विचार-विमर्श
उद्घाटन सत्र के बाद, दो तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया। पहले सत्र में विकलांग बच्चों की देखभाल और संस्थानों में सेवाओं की उपलब्धता पर चर्चा की गई, जबकि दूसरे सत्र में कानून के दायरे में आने वाले बच्चों और पीड़ित बच्चों को न्यायिक प्रक्रिया की जानकारी प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
कार्यशाला में न्यायपालिका के उच्च पदस्थ न्यायाधीशों, सरकारी अधिकारियों और विभिन्न विभागों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति ने इस आयोजन को और भी महत्वपूर्ण बना दिया।