हाईकोर्ट ने दी CAT के समक्ष जाने की स्वतंत्रता
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक शारीरिक रूप से विकलांग रेलवे कर्मचारी द्वारा दायर की गई रिट याचिका को खारिज कर दिया है। इस याचिका में आंतरिक शिकायत समिति (ICC) द्वारा अनुशंसित उसके स्थानांतरण को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता पर एक महिला सहकर्मी को अनुचित संदेश भेजने का आरोप था, जिसे लेकर यह स्थानांतरण हुआ था।
याचिकाकर्ता, जो रेलवे में शारीरिक रूप से विकलांग कर्मचारी संघ (PCEA) के अध्यक्ष भी हैं, ने संविधान के अनुच्छेद 226/227 के तहत अदालत में गुहार लगाई थी। उनका आरोप था कि उन्होंने सूचना के अधिकार (RTI) के माध्यम से अनियमितताओं और भ्रष्टाचार को उजागर किया, जिसके कारण भ्रष्ट रेलवे अधिकारियों ने उन्हें निशाना बनाया।
याचिकाकर्ता ने अदालत में दावा किया कि एक महिला कर्मचारी ने उनके खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन पर “गंदे और अश्लील संदेश” भेजने का आरोप लगाया गया था। भारतीय दंड संहिता की धारा 509(बी) के तहत उनके खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज की गई थी। जमानत अर्जी के लंबित रहते हुए, शिकायतकर्ता ने एक हलफनामा दायर किया जिसमें कहा गया कि प्राथमिकी गलतफहमी और भ्रम के आधार पर दर्ज की गई थी।
याचिका में बताया गया कि ICC ने याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही शुरू की और स्थानांतरण का आदेश बिना उनकी प्रस्तुतियों और दलीलों पर विचार किए जारी किया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) का रुख किया, जिसने सक्षम प्राधिकारी को 60 दिनों के भीतर स्थानांतरण आदेश पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय से राहत की मांग करते हुए CAT के आदेश को रद्द करने, स्थानांतरण आदेश पर रोक लगाने, उनके वार्षिक गोपनीय प्रतिवेदन (APAR) और सेवा रिकॉर्ड को सुधारने और उन्हें सम्मानजनक स्थिति में पूर्व पदस्थ स्थान पर वापस बहाल करने की अपील की।
प्रत्युत्तर में, रेलवे अधिकारियों ने याचिकाकर्ता के आरोपों को गलत और निराधार बताया। उन्होंने कहा कि आईसीसी ने याचिकाकर्ता के स्थानांतरण की सिफारिश यौन उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत वैधानिक प्रावधानों के अनुसार की थी। CAT के आदेश का पालन किया जा चुका था, और यदि याचिकाकर्ता को कोई शिकायत थी, तो उन्हें CAT के समक्ष आवेदन दायर करना चाहिए।
उच्च न्यायालय ने पाया कि ICC को यौन उत्पीड़न अधिनियम की धारा 12 के तहत कर्मचारी के स्थानांतरण की सिफारिश करने का अधिकार है। CAT ने प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता के मामले पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया था, इधर प्रतिवादी रेलवे ने 9 अक्टूबर 2023 को एक आदेश पारित किया, जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता के स्थानांतरण पर तब तक कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती जब तक अनुशासनात्मक/आपराधिक मामले का निपटारा नहीं हो जाता। उच्च न्यायालय ने CAT के आदेश में कोई त्रुटि नहीं पाई और याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता को CAT के समक्ष आवेदन करने की स्वतंत्रता प्रदान की।