बिलासपुर गुरु घासीदास विश्वविद्यालय को सिकलसेल एनीमिया के प्रबंधन और इलाज के लिए 8.57 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट अनुदान मिला है। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा प्रमोशन ऑफ यूनिवर्सिटी रिसर्च एंड साइंटिफिक एक्सीलेंस प्रोग्राम (पर्स 2024) के तहत यह राशि “छत्तीसगढ़ के बैगा समुदाय द्वारा सिकलसेल रोग के लिए उपयोग की जाने वाली पारंपरिक औषधियों के डिज़ाइन, विकास और सत्यापन” परियोजना के लिए स्वीकृत की गई है।

विश्वविद्यालय देश के उन 9 संस्थानों में से एक है, जिन्हें इस पर्स प्रोग्राम के अंतर्गत चुना गया है।

सिकलसेल उन्मूलन के लिए समर्पित प्रयास

कुलपति प्रो. चक्रवाल ने बताया कि इस अनुदान से विश्वविद्यालय में शोध, अनुसंधान एवं नवाचार को नई गति मिलेगी। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ का एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय सिकलसेल एनीमिया जैसी गंभीर बीमारी के उन्मूलन में समर्पण के साथ कार्य करेगा। विशेष रूप से, बैगा समुदाय के पारंपरिक औषधीय ज्ञान का वैज्ञानिक सत्यापन कर इसे प्रभावी रूप से प्रसारित किया जाएगा। विश्वविद्यालय की परियोजना छत्तीसगढ़ राज्य के स्वास्थ्य विभाग और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के साथ मिलकर काम करेगी, जिससे सिकलसेल एनीमिया उन्मूलन के लक्ष्य को 2047 तक हासिल करने में मदद मिलेगी।

जनजातीय औषधियों का वैज्ञानिक सत्यापन 

परियोजना के तहत, सिकलसेल प्रभावित क्षेत्रों में अध्ययन किया जाएगा और बैगा समुदाय के पारंपरिक औषधीय उपचारों का वैज्ञानिक सत्यापन कर नई दवाइयाँ विकसित की जाएंगी। इसके लिए चार सौ मेगाहर्ट्ज न्यूक्लियर मैगनेटिक रिसोनेंस (एनएमआर), डीएनए सीक्वेंसर, एफटीआईआर, एचपीएलसी और एक्सीलरेटेड साल्वेंट एक्सट्रेक्टर जैसे उपकरणों का अधिग्रहण किया जाएगा, जिससे अत्याधुनिक शोध और विश्लेषण संभव हो सकेगा।

इस परियोजना के कोऑर्डिनेटर प्रो. संतोष कुमार प्रजापति, वनस्पति विज्ञान विभाग के हैं, जबकि को-कोऑर्डिनेटर प्रो. एलवीकेएस भास्कर, प्राणी शास्त्र विभाग और डॉ. जय सिंह, शुद्ध एवं अनुप्रयुक्त भौतिकी विभाग के हैं। चार वर्षों की इस परियोजना से जनजातीय समुदायों में सिकलसेल एनीमिया के उन्मूलन हेतु नए समाधान और अनुसंधान की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की उम्मीद है।

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