छत्तीसगढ़ पुलिस का जवाब- पहचान नहीं बताई, संदिग्ध गतिविधि पर की गई थी रोकथाम की कार्रवाई
रायपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र के कोंडागांव जिले में पश्चिम बंगाल के नादिया जिले से आए प्रवासी मजदूरों को हिरासत में लिए जाने को लेकर राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने इस घटना को राज्य प्रायोजित आतंकवाद और अपहरण बताया है।
Attention @ChhattisgarhCMO @KondagaonDist @CG_Police you are physically pushing my workers into buses forcibly to send them back! You have NO right to stop free movement of people – Fundamental rights Articles 19 (1) (d) & (g) . STOP pic.twitter.com/G3GOeMhRYn
— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) July 15, 2025
महुआ मोइत्रा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक वीडियो पोस्ट करते हुए कहा कि कोंडागांव पुलिस ने उनके संसदीय क्षेत्र (कृष्णा नगर, पश्चिम बंगाल) के 9 मजदूरों को हिरासत में लिया, जबकि वे एक वैध लेबर कॉन्ट्रैक्टर के माध्यम से पूरे दस्तावेजों और सत्यापन के साथ काम के लिए छत्तीसगढ़ आए थे। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि न तो उनके परिवारों को और न ही पश्चिम बंगाल सरकार को इस हिरासत की कोई जानकारी दी गई।
सांसद मोइत्रा ने यह भी कहा कि पुलिस द्वारा मजदूरों को रिहा किए जाने की सूचना के बावजूद उनके मोबाइल पर संपर्क नहीं हो पा रहा है। महुआ मोइत्रा का दावा है कि कोंडागांव के पुलिस अधीक्षक (एसपी) ने उन्हें बताया कि वे नहीं चाहते कि ये मजदूर वहां रहें। इस पर उन्होंने सवाल उठाया कि जब मजदूर कानूनी रूप से काम कर रहे हैं, तो उन्हें राज्य से बाहर क्यों किया जा रहा है?
इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए कोंडागांव के एसपी अक्षय कुमार ने कहा है कि ये मजदूर बीते तीन महीनों से कोंडागांव में रह रहे थे, लेकिन स्थानीय थाने को इसकी कोई सूचना नहीं दी थी, जबकि पुलिस द्वारा बार-बार इसकी घोषणा की गई थी।
एसपी के अनुसार जब पुलिस गश्त पर थी, तब ये मजदूर मिले। उनसे जब नाम और पहचान पत्र मांगे गए, तो उन्होंने कोई दस्तावेज नहीं दिखाए और पुलिस से बदसलूकी करने लगे। इसके बाद उन्हें स्थानीय एसडीएम (डिप्टी कलेक्टर) के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जिन्होंने भारतीय न्याय संहिता की धारा 128 के तहत अच्छे व्यवहार की गारंटी के लिए एहतियातन हिरासत का आदेश दिया।
एसपी अक्षय कुमार ने यह भी कहा कि अब सभी मजदूरों को रिहा कर दिया गया है और यह अब उनके ऊपर है कि वे कोंडागांव में रुकना चाहते हैं या अपने राज्य लौटना चाहते हैं।
मालूम हो कि बस्तर में बांग्लादेशियों की मौजूदगी की तलाशी के अभियान के दौरान इन मजदूरों को 12 जुलाई को हिरासत में लिया गया था। इन पर आरोप था कि उन्होंने अपने पहचान पत्र नहीं दिखाए। इसके बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका 14 जुलाई को दायर की गई थी। तब सरकार की ओर से जानकारी दी गई कि उन्हें पहचान बताए जाने के बाद रिहा कर दिया गया है।













