नाम-डॉ. मनीष श्रीवास्तव।
डिग्री- एमबीबीएस, डीओएमएस (ओफ्थाल्मोलॉजिस्ट), नेत्र रोग विशेषज्ञ।
निवास-रायपुर।
विशेष योग्यता- तरह-तरह से सीटियां बजाना, वह भी उंगलियों का इस्तेमाल किए बगैर।
आज सुबह कंपनी गार्डन में सेहत के लिए दौड़ लगाते, योग करते लोगों का ध्यान एकाएक इस शख्स की तरफ खिंच गया। ये थे रायपुर के डॉ. मनीष श्रीवास्तव। उन्हें कई लोगों ने घेर रखा था, जिनमें उनके बिलासपुर के दोस्त तो थे ही कई बच्चे और युवा भी थे, जो उनकी कर्ण-भेदी सीटियों के मुरीद हो गए।
डॉ. श्रीवास्तव रायपुर के जाने-माने नेत्र विशेषज्ञों में से एक है। बिलासपुर में मधुमेह के चलते होने वाले अंधत्व से बचाव के लिए आयोजित सेमिनार और रैली में भाग लेने के लिए डॉ. श्रीवास्तव का दो दिन का बिलासपुर प्रवास हुआ। बिलासपुर में ही स्कूल और कॉलेज के कुछ बरस वे बिता चुके हैं। उनके पुराने सहपाठी यहां मिल गए और उनसे पूछ बैठे कि-आप में स्कूल के दिनों में जो तरह-तरह से सीटियां बजाने की विधा पनपी थी, उसका क्या हुआ। फिर क्या था, डॉ. साहब ने तरह-तरह से सीटियां बजाई। कुछ फिल्मी गानों के धुन भी सुना दिए। सीटियां सुनकर वहां भीड़ खड़ी हो गई।
अब डॉक्टर साहब ने लोगों को सीटी का महत्व समझाना शुरू किया। कहा कि शंख के बाद सीटी का ही स्थान आता है जिसमें सांसों के तालमेल से धुन निकाली जा सकती है। शंख तो एक यंत्र है जो पूजा-पाठ तक सीमित है, पर सीटी हमारे होठों और जिह्वा में मौजूद नैसर्गिक प्रतिभा है और इसका प्रदर्शन कहीं भी किया जा सकता है।
डॉ. श्रीवास्वव कहते हैं कि चौक चौराहों, गलियों और कॉलेजों में आप इसे बजा दें तो आवारागर्दी मानी जाएगी लेकिन वे एमबीबीएस की पढ़ाई के दौरान सालाना जलसे में, डॉक्टरों के सेमिनार में और कई दूसरे समारोहों में सीटियां बजा चुके हैं और कोई भी इसका बुरा नहीं मानता बल्कि इसके महत्व के बारे में पूछते हैं।
म्यूजिक थेरैपी की संस्था ‘तन-मन-रंजन’ से जुड़े
दरअसल, डॉ. श्रीवास्तव म्यूजिकथेरैपी पर छत्तीसगढ़ में काम कर रही संस्था ‘तन-मन-रंजन’ से जुड़े हैं। यह संगठन अच्छी सेहत के लिए संगीत को महत्वपूर्ण मानता है। कंपनी गार्डन में आज जब वे पहुंचे तो इस समूह से जुड़े रमेश दुआ, शिवशंकर अग्रवाल, सुजीत गुप्ता आदि भी यहां मिल गए। डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि श्वास का लयबद्ध अभ्यास मधुमेह, रक्तचाप जैसे रोगों को दूर करता ही है, मानसिक व्यायाम भी होता है। सीटी बजाना इसका बढ़िया तरीका है।
उंगलियां डालकर न बजाएं….
डॉ. श्रीवास्तव की खूबी यह है कि वे मुंह में उंगलियां डाले बगैर ही सीटी बजाते हैं। उनका कहना है कि उंगलियों का इस्तेमाल व्यर्थ है। कई बार हमारे हाथ साफ नहीं होते। बिना उंगलियों इस्तेमाल करे बजाएं। होठों को हनुमान जी की तरह फुलाएं जीभ को ऊपर के होठों से चिपकाकर दबाव के साथ सांस बाहर फेंके। थोड़े दिनों में आप एक बेहतरीन सीटीबाज बन जाएंगे।
व्हिसलर क्लब बनाने की तैयारी
डॉ. श्रीवास्तव कहते हैं एक समय था जब लोग हास्य योग को सेहत के लिए जरूरी नहीं मानते थे, लेकिन आज देश में जगह-जगह हास्य योग क्लब हैं। इसी तरह लोग एक दिन सीटी का महत्व समझेंगे। देश में सैकड़ों लोग हैं जो स्वास्थ्य के लिए सीटी बजाते हैं। इन सबको जोड़कर एक राष्ट्रीय स्तर का संगठन बनाने की उनकी मंशा है।