अदालत से सड़क तक लड़ाई लड़ रहे अधिवक्ता श्रीवास्तव ने आयकर विभाग की रिपोर्ट पर खड़े किए सवाल
रायपुर। छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में हो रहे कोयला खनन के विरोध और विदेशी फंडिंग के आरोपों के बीच एक जटिल विवाद उभरकर सामने आया है। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, छत्तीसगढ़ विधानसभा और लाखों स्थानीय लोग हसदेव अरण्य को बचाने की मुहिम चला रहे हैं वहीं आयकर विभाग इस आंदोलन को विदेशी फंडिंग से संचालित होना बता रहा है। हसदेव के लिए अदालत से लेकर सड़क तक लड़ाई लड़ रहे अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने इसे नकारते हुए और कई तथ्य सामने रखते हुए सरकारी एजेंसी पर सवाल खड़े किए हैं।
विधानसभा का सर्वसम्मत प्रस्ताव
छत्तीसगढ़ विधानसभा ने 26 जुलाई 2022 को सर्वसम्मति से एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें हसदेव अरण्य क्षेत्र में चल रही कोयला खदान परियोजनाओं को रद्द करने और क्षेत्र को संरक्षित करने की मांग की गई थी। यह प्रस्ताव विधायकों के बीच व्यापक सहमति से आया, जिसमें कांग्रेस, भाजपा और बसपा जैसे प्रमुख दलों के सदस्य शामिल थे। इस क्षेत्र का पर्यावरणीय महत्व देखते हुए इसे संरक्षित करने के लिए विधानसभा ने पुरजोर समर्थन किया। श्रीवास्तव ने सवाल किया कि क्या इसे भी विदेशी फंडिंग से प्रेरित बताया जा सकता है? श्रीवास्तव ने कहा, “छत्तीसगढ़ विधानसभा के निर्णय को विदेशी फंडिंग से जोड़ना पूरे राज्य और विधानसभा के सम्मान पर सवाल खड़ा करने जैसा है।”
वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट की सिफारिशें
श्रीवास्तव ने कहा कि वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया भारत सरकार की प्रतिष्ठित संस्था है। उसने दो वर्षों के व्यापक अध्ययन के बाद हसदेव अरण्य क्षेत्र को ‘नो-गो जोन‘ घोषित करने और इसे संरक्षण रिजर्व के रूप में विकसित करने की सिफारिश की। इस रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया कि क्षेत्र में खनन कार्य बढ़ने से न केवल स्थानीय पारिस्थितिकी का नाश होगा, बल्कि हाथियों और मानव के बीच संघर्ष भी बढ़ेगा। क्या इस तरह की रिपोर्ट भी विदेशी फंडिंग का परिणाम है? श्रीवास्तव ने कहा कि वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की सिफारिशें विशुद्ध रूप से वैज्ञानिक अध्ययन पर आधारित हैं और इसे किसी विदेशी षड्यंत्र का हिस्सा बताना सरासर गलत है। इस रिपोर्ट में बांगो बांध के जलग्रहण क्षेत्र को संरक्षित करने की भी वकालत की गई, जो कोरबा, रायगढ़, और बिलासपुर जिलों के पानी की जरूरतों को पूरा करता है।
स्थानीय लोगों का विरोध विदेशी फंडिंग?
उन्होंने कहा कि हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन के खिलाफ चल रहे आंदोलन को हजारों स्थानीय लोगों का समर्थन प्राप्त है। बस्तर से सरगुजा तक के लोग इस क्षेत्र को बचाने के लिए सड़कों पर उतरे हैं। सैकड़ों गीत, कविताएं और नाटक इस आंदोलन के समर्थन में रचे गए हैं। यह आंदोलन स्थानीय जनजातीय समुदायों और पर्यावरण प्रेमियों के सामूहिक प्रयासों का परिणाम है।
श्रीवास्तव ने इस आंदोलन को विदेशी फंडिंग से जोड़ने के आरोपों को नकारते हुए कहा, “क्या हजारों छत्तीसगढ़ी लोग, जो इस क्षेत्र के जंगल, जल और पर्यावरण को बचाने के लिए लड़ रहे हैं, किसी विदेशी एजेंडे के तहत काम कर रहे हैं? यह आरोप न केवल आंदोलनकारियों के अपमान का प्रतीक है, बल्कि यह उनके संघर्ष की अवहेलना भी करता है।”
आयकर विभाग की जांच
मालूम हो कि आयकर विभाग ने 7 सितंबर 2022 को कई प्रमुख एनजीओ, जैसे ऑक्सफैम, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर), और एनवायरनिक्स ट्रस्ट के खिलाफ छापेमारी की थी। छापेमारी के दौरान यह दावा किया गया कि इन संस्थाओं ने विदेशी फंडिंग के जरिए हसदेव अरण्य परियोजना के खिलाफ आंदोलन को समर्थन दिया। रिपोर्ट में दावा किया गया कि सीपीआर को 2016 से 2023 के बीच “नामति-पर्यावरण न्याय कार्यक्रम” के तहत लगभग 10.19 करोड़ रुपये की विदेशी फंडिंग मिली, जिसका इस्तेमाल हसदेव परियोजना के खिलाफ मुकदमेबाजी के लिए किया गया।
इसके अलावा, ऑक्सफैम पर अडानी समूह के खिलाफ साजिश करने और ऑस्ट्रेलिया में अडानी पोर्ट्स को डि-लिस्ट करने के प्रयास करने का आरोप लगाया गया। एनवायरनिक्स ट्रस्ट पर भी अडानी गोड्डा प्लांट और अन्य परियोजनाओं के खिलाफ विदेशी समर्थन प्राप्त करने के आरोप लगे।
एनजीओ पर सरकारी दबाव
इंडियन एक्सप्रेस की एक संपादकीय टिप्पणी में इस मुद्दे को लोकतंत्र में स्वतंत्र अभिव्यक्ति और सामाजिक संगठनों की स्वतंत्रता पर संकट बताया गया है। आयकर विभाग द्वारा इन एनजीओ पर की गई कार्रवाइयों को लेकर यह आरोप लगाए जा रहे हैं कि ये कार्रवाइयां न केवल कर उल्लंघनों से संबंधित हैं, बल्कि इसका उद्देश्य विदेशी फंडिंग को लेकर डर फैलाना और इन संगठनों को कमजोर करना है।
इस रिपोर्ट के अनुसार, यह सवाल भी उठता है कि आयकर विभाग को राष्ट्रीय हित की रक्षा का जिम्मा उठाने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या सरकार का उद्देश्य स्वतंत्र संस्थाओं और एनजीओ की भूमिका को कमतर करना है?
आरोपों के बीच सच्चाई
अधिवक्ता श्रीवास्तव का कहना है कि यह आंदोलन पर्यावरणीय संरक्षण और स्थानीय समुदायों के हितों की रक्षा के लिए किया जा रहा है। विदेशी फंडिंग के आरोपों ने इस पूरे आंदोलन की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया है। हसदेव आंदोलन के समर्थकों का कहना है कि इस तरह के आरोपों से कोई विचलित नहीं होगा। हसदेव को बचाने की लड़ाई न केवल स्थानीय हितों की रक्षा की लड़ाई है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ के पर्यावरण और भविष्य के जल संसाधनों की रक्षा का भी सवाल है।