बिलासपुर। एसईसीएल (साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड) को अतिरिक्त रॉयल्टी के भुगतान संबंधी आदेशों के खिलाफ बड़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट ने कलेक्टर (खनन विभाग) कोरबा द्वारा जारी आदेशों को खारिज करते हुए एसईसीएल की याचिकाएं मंजूर कर ली हैं।
मा्ंगी गई थी अतिरिक्त रॉयल्टी
कोरबा के कलेक्टर ने 2 सितंबर 2013 और 31 अगस्त 2018 को आदेश जारी कर एसईसीएल को 2011-12 के लिए क्रमशः 7,34,135 रुपये और 8,09,163 रुपये अतिरिक्त रॉयल्टी जमा करने को कहा था। इस फैसले को एसईसीएल ने हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिस पर सुनवाई के बाद जस्टिस संजय के अग्रवाल की सिंगल बेंच ने कलेक्टर के आदेशों को निरस्त कर दिया।
CAG की रिपोर्ट को बनाया था आधार
एसईसीएल ने अपनी याचिका में दलील दी कि उसने ई-नीलामी के तहत तय कीमत पर रॉयल्टी का भुगतान किया था। हालांकि, खनन विभाग के कलेक्टर ने सीएजी (CAG) की रिपोर्ट के आधार पर अतिरिक्त रॉयल्टी जमा करने का आदेश दे दिया। एसईसीएल ने यह भी तर्क दिया कि कोयले की बिक्री पर रॉयल्टी का भुगतान केंद्र सरकार की 1 अगस्त 2007 की अधिसूचना के अनुसार किया गया था, और राज्य सरकार इसे बदलने का अधिकार नहीं रखती।
राज्य सरकार का तर्क
राज्य सरकार ने अदालत में दावा किया कि कोल इंडिया ने 26 फरवरी 2011 को ROM ग्रेड B के लिए 3,990 रुपये प्रति टन की दर तय की थी। ऐसे में रॉयल्टी भी इसी दर से वसूली जानी चाहिए थी, न कि नीलामी में तय कीमत के आधार पर।
राज्य सरकार बदलाव नहीं कर सकती- कोर्ट
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार की अधिसूचना बाध्यकारी है और राज्य सरकार रॉयल्टी की दर में कोई बदलाव नहीं कर सकती। कोर्ट ने यह भी माना कि सीएजी की रिपोर्ट केवल एक सिफारिश होती है, बाध्यकारी नहीं। इस आधार पर, हाईकोर्ट ने कलेक्टर द्वारा जारी 2 सितंबर 2013, 12 जून 2013 और 31 अगस्त 2013 के आदेशों को निरस्त कर दिया।
एसईसीएल को राहत
इस फैसले के बाद एसईसीएल को अतिरिक्त रॉयल्टी जमा करने की बाध्यता से पूरी तरह राहत मिल गई है। अदालत के इस निर्णय से अन्य कोयला कंपनियों को भी लाभ मिल सकता है, जो इसी तरह के मामलों में कानूनी प्रक्रिया से गुजर रही हैं।