गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय का अष्ठम दीक्षांत समारोह

बिलासपुर । राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने कहा है कि शिक्षकों को चाहिये कि वे छात्रों में कानून के प्रति सम्मान छात्रों में अनुशासन, सहिष्णुता और समय के प्रति पाबंद जैसे जीवन मूल्यों का संचार करे जिससे वे एक लोकतांत्रिक देश के सच्चे नागरिक बन सकें और कानून के शासन को मजबूत बनाएं। राष्ट्रपति ने केन्द्रीय गुरु घासीदास विश्वविद्यालय को आने वाले दस वर्षों में देश के सर्वोत्तम विश्वविद्यालय के रूप में पहचान बनाने का लक्ष्य दिया है।

गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह आज सुबह विश्वविद्यालय प्रांगण में आयोजित किया गया। कार्यक्रम में राज्यपाल अनुसूईया उइके, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, कुलाधिपति प्रो. अशोक मोडक सहित अनेक विशिष्ट जन उपस्थित थे।


राष्ट्रपति ने कहा कि आज दुनिया भर में भारत की पहचान एक आधुनिक और उद्यमी राष्ट्र के रूप मे हो रही है। आज जैसे युवाओं की बदौलत ही आज हम दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा स्टार्ट अप इको सिस्टम तैयार कर रहे हैं। आधुनिक विज्ञान से लेकर अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में हम अभूतपूर्व उपलब्धियां हासिल कर रहे हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें बताया गया है कि गुरु घासीदास विश्वविद्यालय में नवाचार को प्रोत्साहन देते हुए विलुप्त होती बोलियों, भाषाओं को संरक्षित करने के लिए आदित भाषा संरक्षण केन्द्र की स्थापना की गई। यह हमारे समाज के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि भाषा को बचाने से ही हमारी परम्परा और संस्कृति का संरक्षण हो सकेगा।

कोविन्द ने कहा कि मुझे मालूम हुआ है कि इस विश्वविद्यालय के अनेक पूर्व विद्यार्थी वैज्ञानिक, प्रशासक, टैक्नोक्रेट के रूप में देश के अनेक उत्कृष्ट संस्थानों में कार्य कर रहे हैं। ऐसे विद्यार्थियों से मेरा अनुरोध है कि वे अपना कुछ समय और संसाधन विश्वविद्यालय को दें और विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करें। जिस विश्वविद्यालय में उन्होंने शिक्षा प्राप्त किया हो, उनमें वर्ष में कम से कम एक बार अवश्य विजिट करें, ताकि वहां पढ़ रहे विद्यार्थियों को प्रेरणा मिले।

राष्ट्रपति ने याद किया कि पिछली बार जब वे छत्तीसगढ़ आये थे तो उन्हें महिला स्व सहायता समूह तथा किसान समूहों से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ था। यह देखा कि पशु पालन, मुर्गी पालन, शहद उत्पादन के जरिये वे किस तरह सफलता प्राप्त कर मिसाल पेश की। राष्ट्रपति ने पिछली यात्रा के दौरान नक्सली हिंसा से प्रभावित परिवारों के बच्चों के लिए खोले गये ‘आस्था’ विद्या मंदिर का जिक्र करते हुए उनके संकल्प शक्ति की सराहना की। राष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा से रोशनी के प्रयासों से आंतक व हिंसा के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है। राष्ट्रपति ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की इस बात के लिए सराहना की कि वे युवाओं को रोजगार दिलाने के लिए ऐसी योजनाओं के जरिये प्रयास कर रहे हैं।

राष्ट्रपति कोविन्द ने कहा कि यह हर्ष की बात है कि गुरु घासीदास विश्वविद्यालय को प्रो. अशोक मोदक जैसे शिक्षाविद् कुलाधिपति मिले हैं तथा प्रो. अंजीला गुप्ता की तरह ऊर्जावान कुलपति प्राप्त हैं। राज्पपाल अनुसूइया उइके ने छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की शिक्षा के लिए काफी प्रयास किये हैं। ऐसी स्थिति में विश्वविद्यालय को अपने भविष्य के लिए कुछ लक्ष्य तय करने हैं, जैसे आने वाले दस वर्षों में इस केन्द्रीय विश्वविद्यालय को देश के सर्वोत्तम विश्वविद्यालयों में सम्मिलित करना। इस तरह से कुछ महत्वाकांक्षा तय करके हमें आगे बढ़ना होगा।

राष्ट्रपति के कहा कि आम तौर पर केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को राज्य के विश्वविद्यालयों का स्तर ऊंचा माना जाता है। न केवल गुरु घासीदास विश्वविद्यालय से बल्कि देश के सभी केन्द्रीय विश्वविद्यालयों से मेरी अपेक्षा है कि वे शिक्षा की गुणवत्ता और अन्य मापदंडों पर राज्यों के विश्वविद्यालयों से बेहतर प्रदर्शन करें।

अपने लगभग 15 मिनट के उद्बोधन की शुरूआत राष्ट्रपति ने समाज सुधारक संत गुरु घासीदास को याद करते हुए की। उन्होंने कहा कि सोमवार के दिन यह दीक्षांत समारोह होने से उन्हें विशेष प्रसन्नता है क्योंकि यह माना जाता है कि 1756 ईसवी सन् में सोमवार के ही दिन गुरु घासीदास जी ने जन्म लिया था। गुरु घासीदास ने कमजोर वर्गों के लिए संघर्ष किया। उन्होंने कहा-‘मनखे-मनखे एक समान’ यानि सभी मानव एक हैं। उन्होंने सत्य और समरसता की सीख दिलाई। राष्ट्रपति ने याद किया कि वे पिछली बार जब 6 नवंबर 2017 को गिरौदपुरी प्रवास पर आये थे उन्हें जैतखाम की एक प्रतिकृति भेंट की गई थी, आज भी वह प्रतिकृति राष्ट्रपति भवन में समुचित स्थान पर स्थापित की गई है।

अपने उद्बोधन में राष्ट्रपति ने शिक्षा शास्त्री जगन्नाथ प्रसाद ‘भानु’, मुकुटधर पांडेय, पदुम लाल पुन्नालाल बख्शी, लोचन प्रसाद पांडेय, ई. राघवेन्द्र राव, बैरिस्टर छेदीलाल, पं. रविशंकर शुक्ल सहित छत्तीसगढ़ का गौरव स्थापित करने में पंडवानी गायिका तीजन बाई के योगदान को याद किया। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के पारम्परिक नृत्य पंथी, सुआ, करमा को दुनिया भर में जाना जाता है। बिलासपुर के महत्व को रेखांकित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि इसे दक्षिण कोसल के रूप में जाना जाता है और रतनपुर प्रदेश की प्राचीन राजधानी रही है।

दीक्षांत समारोह आज निर्धारित समय से एक घंटे देर से सुबह 11 बजे प्रारंभ हुआ। ऐसा करने का निर्देश स्वयं राष्ट्रपति ने कल शाम दिया था। आज अपने भाषण में इसका जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने कार्यक्रम में पहुंचे छात्रों से कहा कि आपने एक घंटे देर से कार्यक्रम शुरू कर आपने बोर्ड परीक्षा दिलाने वाले बच्चों को अप्रत्यक्ष रूप से बहुत बड़ा सहयोग दिया है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कुलाधिपति प्रो. अशोक मोदक ने भी कार्यक्रम को सम्बोधित किया।

कुलपति प्रो. गुप्ता ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि पहली बार केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद देश के प्रथम नागरिक का दीक्षांत समारोह में आने से सब हर्षित हैं। उन्होने कहा कि सन 2015 में जब उन्होने पदभार  सम्भाला तो यहां अनेक आधारभूत तथा अकादमिक संरचनाओं की कमी थी। आज विश्वविद्यालय ने काफी विस्तार किया है।  नये शैक्षणिक भवनों के निर्माण, रिक्त प्राध्यापक पदों पर भर्ती की प्रक्रिया जारी है। यहां विशाल सेंट्रल लाइब्रेरी है। दुनिया भर के रिसर्च पेपर छात्रों को उपलब्ध हैं। हमर ध्येय नवाचार और शोध के साथ गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्रदान करना है।

राष्ट्रपति ठीक 10.50 बजे विश्वविद्यालय परिसर पहुंचे। यहां पर राज्यपाल अनुसुइया उइके, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, कुलाधिपति प्रोफेसर अशोक मोड़क और कुलपति प्रो. अँजीला गुप्ता ने उनका स्वागत किया।

सबसे पहले उन्होने गोल्ड मेडलिस्ट छात्र-छात्राओँ  के साथ समूह तस्वीर खिंचवाई। कार्यक्रम स्थल पर अतिथिगण शोभा यात्रा के साथ पहुंचे। राष्ट्रगान के पश्चात अतिथियों ने दीप प्रज्जवलित  किया। इस दौरान विश्वविद्यालय की तरंग बैंड ने सरस्वती वन्दना का गान किया।

 

 

 

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