केन्द्रीय विश्वविद्यालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग में शोध अध्ययन
बिलासपुर। गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय की जीव विज्ञान अध्ययनशाला के जैव प्रौद्योगिकी विभाग में अमरकंटक के जंगलों की मिट्टी से एस्पर जैलस फ्लैवस नामक एक कवक की खोज की गई है। यह कवक मैलाकाइट ग्रीन एवं लीग्निमोलाइटिक जो कि टेक्सटाइल उद्योग एवं कागज उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषित जल में विषाक्त के रूप में मौजूद होते हैं को विघटित करने एवं उसकी तुलनात्मक रूप से विषाक्तता को कम करने में सक्षम है।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग में मैलाकाइट ग्रीन एवं लैग्निन की विषाक्तता एवं उससे होने वाले प्रदूषण को कम करने वाले कवक की खोज कर उस पर शोध अध्ययन किया जा रहा है। डॉ. हरित झा, सहायक प्राध्यापक, जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा बायोडिग्रेडेशन ऑफ मैलाकाइट ग्रीन बाय दि लीग्निमोलाइटिक फंगस एस्पर जैलिस फ्लैवस विषय पर शोध किया गया है।
मैलाकाइट एवं लैग्निन विभिन्न उद्योगों से निकलने वाले गंदे पानी से जल स्त्रोतों को प्रदूषित करता है। इस शोध अध्ययन में पाया गया कि एस्पर जैलस फ्लैवस को अगर इमोबेलाइजेशन प्रक्रिया के द्वारा उपयोग में लाया जाए तो उद्योगों से निकलने वाले इस प्रदूषित एवं विषाक्त उत्सर्जन को खत्म किया जा सकता है, जिससे प्रदूषण को खत्म करने एवं हमारे जल स्त्रोतों को साफ रखने में सफलता मिलेगी।
इस शोध में एस्पर जैलिस फ्लैवस की इस क्षमता का अध्ययन लिक्विड क्रोमेटोग्राफी-मास स्पेक्ट्रोस्कोपी, इनफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी के माध्यम से किया गया है।