नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जेलों में जाति-आधारित कार्य विभाजन को समाप्त करने के लिए महत्वपूर्ण निर्देश दिए। कोर्ट ने कई राज्यों की जेल नियमावलियों में शामिल उन प्रावधानों को असंवैधानिक करार दिया, जो कैदियों के कार्य आवंटन को उनकी जाति के आधार पर निर्धारित करते थे। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने जेलों में जातिगत भेदभाव को रोकने के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

जाति-आधारित भेदभाव पर रोक

सुप्रीम कोर्ट ने जेल नियमावली में उन प्रावधानों को असंवैधानिक ठहराया है जो कैदियों को उनकी जाति के आधार पर कार्य सौंपने की अनुमति देते थे। कोर्ट ने कहा, “हमारे संविधान के अनुच्छेद 15 के तहत जाति के आधार पर कोई भी भेदभाव अस्वीकार्य है। निम्न जातियों से आने वाले कैदियों को केवल सफाई और अपमानजनक कार्य सौंपना संविधान का उल्लंघन है।”

तीन महीने में संशोधन के आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को तीन महीने के भीतर अपनी जेल नियमावलियों में आवश्यक संशोधन करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि अब किसी भी कैदी की जाति का विवरण जेल रजिस्टर में नहीं रखा जाएगा। यह फैसला उन कैदियों की गरिमा की रक्षा के लिए है जिन्हें उनकी जाति के आधार पर अलग-अलग काम सौंपे जाते थे।

याचिका और पृष्ठभूमि

यह फैसला पत्रकार सुकन्या शांथा द्वारा दायर एक याचिका पर आया है, जिसमें उन्होंने बताया कि कई राज्यों की जेल नियमावलियों में जातिगत भेदभाव को बढ़ावा दिया जा रहा है। याचिका में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, और अन्य राज्यों की जेलों में कार्य विभाजन का उल्लेख किया गया था, जहां ऊंची जातियों के कैदियों को सम्मानजनक कार्य और निम्न जातियों के कैदियों को अपमानजनक कार्य सौंपे जा रहे थे।

साधारण कैदियों से कठिन काम नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की जेल नियमावली के उस प्रावधान पर आपत्ति जताई जिसमें कहा गया था कि साधारण कैदियों को तब तक कठिन कार्य नहीं सौंपा जाएगा जब तक उनकी जाति से ऐसा काम करने की उम्मीद न हो। कोर्ट ने कहा, “कोई भी वर्ग जन्म से ही सफाईकर्मी या किसी विशेष काम के लिए नहीं होता। यह अस्पृश्यता का एक रूप है जिसे किसी भी हाल में स्वीकार नहीं किया जा सकता।”

मानवता और गरिमा का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जेलों में कैदियों को उनकी जाति के आधार पर अलग-अलग वार्डों में नहीं रखा जाएगा। कोर्ट ने कहा, “कैदियों को गरिमा का अधिकार है, और उन्हें मानवीय तरीके से व्यवहार किया जाना चाहिए। जेल प्रणाली को कैदियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए।”

केंद्र और राज्यों को निर्देश

कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह अपनी मॉडल जेल नियमावली में आवश्यक संशोधन करे ताकि किसी भी प्रकार की जातिगत भेदभावपूर्ण व्यवस्थाएं समाप्त हो सकें। इसके अलावा, राज्य सरकारों को तीन महीने के भीतर अपनी जेल नियमावलियों में बदलाव करके रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया गया है।

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