बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के तलाक संबंधी आदेश को सही ठहराते हुए पति की अपील को मंजूर किया और पत्नी की अपील खारिज कर दी। अदालत ने माना कि पत्नी का व्यवहार पति और उसके माता-पिता के प्रति क्रूरता की श्रेणी में आता है।

पत्नी का व्यवहार माना गया क्रूरता

पीठ (जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद) ने पाया कि पत्नी बार-बार पति पर परिवार से अलग रहने का दबाव डालती थी, सास-ससुर का अपमान करती थी और पति को ‘पालतू चूहा’ कहकर ताना मारती थी। यही नहीं, उसने वैवाहिक घर भी छोड़ दिया और लंबे समय तक मायके में रहकर पति को अकेला छोड़ दिया।

Text message और परिजनों की गवाही

पति ने अदालत में टेक्स्ट मैसेज और परिवारजनों की गवाही पेश की, जिसमें स्पष्ट हुआ कि पत्नी झगड़ा करती थी, बड़ों का सम्मान नहीं करती थी और संयुक्त परिवार में रहने से इंकार करती थी। खुद पत्नी ने भी एक मैसेज भेजने की बात मानी, जिसमें उसने लिखा था – अपने माता-पिता को छोड़कर मेरे साथ रहो। अदालत ने इसे मानसिक क्रूरता का सबूत माना।

स्थायी गुजारा भत्ता देने का आदेश

हाईकोर्ट ने कहा कि भारतीय सामाजिक संदर्भ में पति-पत्नी में से किसी एक पर माता-पिता को छोड़ने का दबाव बनाना मानसिक क्रूरता है। अदालत ने यह भी माना कि पत्नी 2010 से लगातार मायके में रह रही है, जो ‘डेज़रशन’ (परित्याग) की परिभाषा में आता है।

पत्नी की पुनर्मिलन की अर्जी खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने तलाक बरकरार रखा। साथ ही पति को निर्देश दिया कि वह पत्नी को 5 लाख रुपये स्थायी गुजारा भत्ता दे। बेटे की परवरिश के लिए पहले से दिया जा रहा खर्च जारी रहेगा। दोनों का विवाह 28 जून 2009 को हुआ था। उनका बेटा 5 जून 2010 को पैदा हुआ, जो वर्तमान में अपनी मां के साथ बिलासपुर में रह रहा है।

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