विशेषज्ञ टीम की रिपोर्ट में नहीं मिला मेडिकल नेग्लिजेंस का प्रमाण, अदालत ने कहा-बिना विशेषज्ञ जांच डॉक्टरों पर कार्रवाई उचित नहीं

बिलासपुरअपोलो हॉस्पिटल के चार डॉक्टरों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया है। यह मामला वर्ष 2016 में एक युवक की इलाज के दौरान हुई मौत से जुड़ा था। अदालत ने कहा कि विशेषज्ञ चिकित्सकों की समिति की रिपोर्ट में मेडिकल नेग्लिजेंस साबित नहीं हुआ है, इसलिए एफआईआर को जारी रखना न्यायसंगत नहीं होगा।

7 साल पुराना मामला, परिजनों ने लगाया था लापरवाही का आरोप

आदर्श कॉलोनी निवासी 29 वर्षीय गोल्डी उर्फ गुरवीन छाबड़ा को 25 दिसंबर 2016 को पेट दर्द की शिकायत पर अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इलाज के दौरान 26 दिसंबर को उसकी मौत हो गई। परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन और डॉक्टरों पर इलाज में लापरवाही का आरोप लगाया था। प्रारंभिक शिकायत पर पुलिस ने कार्रवाई नहीं की, लेकिन बाद में जांच के बाद चार वरिष्ठ डॉक्टरों के खिलाफ लापरवाही और सबूत मिटाने का मामला दर्ज किया गया।

विशेषज्ञ समिति ने दी क्लीन चिट, कोर्ट ने कहा रिपोर्ट निर्णायक

मामले की सुनवाई हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति बी.डी. गुरु की डिवीजन बेंच में हुई। डॉक्टर राजीव लोचन भांजा, सुनील कुमार केडिया, देवेन्द्र सिंह और मनोज कुमार राय की ओर से एडवोकेट सुनील ओटवानी ने क्रिमिनल मिसलेनियस पिटीशन दायर की थी।
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व दृष्टांतों का हवाला देते हुए कहा कि चिकित्सकीय लापरवाही साबित करने के लिए विशेषज्ञों की जांच रिपोर्ट आवश्यक है। विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में किसी भी प्रकार की चिकित्सकीय उपेक्षा नहीं पाई गई। इसलिए कोर्ट ने एफआईआर को निरस्त करने का आदेश जारी किया।

आपराधिक कार्रवाई उचित नहीं 

कोर्ट ने कहा कि बिना विशेषज्ञ जांच रिपोर्ट के आधार पर डॉक्टरों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई करना उचित नहीं है। चिकित्सा क्षेत्र में निर्णय विशेषज्ञों की राय पर आधारित होना चाहिए।

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