बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य में भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करने की मांग करते हुए पेश जनहित याचिका पर बुधवार को सुनवाई की। अदालत ने शासन से शपथपत्र पर यह जानकारी मांगी है कि अब तक क्या कार्रवाई की गई है और कितने डिटेंशन सेंटर राज्य में काम कर रहे हैं। अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद निर्धारित की गई है।
अधिवक्ता अमन सक्सेना ने स्वयं पैरवी करते हुए इस याचिका में राज्य में भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डीविजन बेंच में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या इस एक्ट का दुरुपयोग किया गया है। जवाब में सक्सेना ने कहा कि एक्ट का दुरुपयोग कभी भी हो सकता है, लेकिन मिसयूज के कारण एक्ट असंवैधानिक नहीं होगा। यदि एक्ट ही गलत रूप में बनाया गया है, तो वह असंवैधानिक होता है।
सक्सेना ने अदालत में बताया कि केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री ने संसद में सभी राज्यों के आंकड़े पेश किए थे, जिसमें छत्तीसगढ़ में 8 हजार भिक्षुओं के रहने का उल्लेख किया गया था। यह आंकड़ा 2011 की जनगणना के आधार पर बताया गया था। चीफ जस्टिस से राज्य शासन के अधिवक्ता ने भारत सरकार, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत किए गए डेटा के बारे में कोर्ट को सूचित करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा, जिसे मंजूरी दी गई।
कोर्ट ने शासन से शपथपत्र पर यह जानकारी मांगी है कि अब तक क्या कार्रवाई की गई है और कितने डिटेंशन सेंटर राज्य में काम कर रहे हैं। इस पीआईएल में राज्य में यह अधिनियम भिक्षा को एक जुर्म करार देता है, जिससे गरीब लोग, जिनके पास दो वक्त की रोटी भी नहीं है, उन्हें मुजरिम बताया जाता है। इस विधान के तहत पुलिस किसी भी व्यक्ति को संदेह के आधार पर डिटेन कर सकती है। मप्र में 1973 में पारित इस विधान को छत्तीसगढ़ सरकार ने इसी रूप में ही स्वीकार कर लिया था।