छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने भिलाई नगर की मोहर्रम करबला समिति द्वारा दायर रिट अपील खारिज कर दी, जिसमें उसने अपने धार्मिक स्थल के विध्वंस के खिलाफ एकल न्यायाधीश द्वारा 17 सितंबर 2024 को दिए गए आदेश को चुनौती दी थी।
उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने कहा कि एकल न्यायाधीश के आदेश में कोई अवैधानिकता या क्षेत्राधिकार की त्रुटि नहीं थी, जिसके लिए उसमें हस्तक्षेप किया जाए। खंडपीठ ने समिति के लंबित आवेदन पर छह महीने के भीतर निर्णय लेने के लिए भी कहा है।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने यह निर्णय सुनाया। मामले में समिति की ओर से अब्दुल वहाब खान थे, जबकि प्रतिवादियों की ओर से महाधिवक्ता प्रफुल्ल भारत और उप महाधिवक्ता शशांक ठाकुर ने तर्क प्रस्तुत किए। प्रतिवादी पक्ष में छत्तीसगढ़ के राजस्व और नगरीय प्रशासन विभाग के सचिव, दुर्ग कलेक्टर, और भिलाई नगर निगम (बीएमसी) के अधिकारी शामिल थे।
समिति के धार्मिक स्थल को अवैध निर्माण घोषित कर भिलाई नगर निगम ने 5 सितंबर 2024 को नोटिस जारी किया था, जिसमें स्थल को खाली करने के लिए केवल तीन दिन का समय दिया गया। समिति ने 6 सितंबर को रिट याचिका दायर की, लेकिन निगम ने 9 सितंबर को बुलडोजर चलाकर निर्माण को ध्वस्त कर दिया। इस विध्वंस के खिलाफ समिति ने अदालत में याचिका दायर की थी।
समिति के वकील ने तर्क दिया कि विध्वंस बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए मनमाने ढंग से किया गया। वहीं, प्रतिवादियों ने कहा कि जनवरी 2024 में ही समिति को अवैध निर्माण के बारे में सूचित कर दिया गया था, लेकिन समिति ने निर्देशों का पालन नहीं किया, जिसके चलते निगम को कार्रवाई करनी पड़ी। न्यायालय ने यह भी कहा कि समिति पहले ही कई बार नोटिस मिलने के बावजूद सरकारी भूमि पर अवैध निर्माण करती रही, और रिट याचिका में विध्वंस के मुआवजे की मांग भी नहीं की गई थी।
खंडपीठ ने इस बात पर भी जोर दिया कि भूमि आवंटन के लिए समिति के लंबित आवेदन पर दुर्ग जिला कलेक्टर की ओर से विचार किया जा रहा है।