नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र के परसा ईस्ट केते बासन (PEKB) कोल ब्लॉक में पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने संबंधी याचिका पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के फैसले को निरस्त कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच, जिसमें चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे, ने हाई कोर्ट को आदेश दिया कि वह इस याचिका पर एक महीने के भीतर पुनः सुनवाई करे और गुण-दोष के आधार पर निर्णय ले।

हसदेव अरण्य के पीईकेबी कोल ब्लॉक को राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को आवंटित किया गया है, और इसका संचालन अदानी समूह द्वारा किया जा रहा है। इस कोल ब्लॉक के दूसरे चरण में पेड़ों की कटाई की योजना के खिलाफ हसदेव अरण्य संघर्ष समिति ने बिलासपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। संघर्ष समिति का मुख्य तर्क यह था कि यह जंगल घाटबर्रा गांव और अन्य गांवों के सामुदायिक वन अधिकार क्षेत्र में आता है, जिसे अवैध रूप से रद्द किया गया है।

पहले भी 2022 में, जब इस क्षेत्र में पेड़ों की कटाई शुरू की गई थी, समिति ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर इस कटाई पर रोक लगाने की मांग की थी। उस समय हाई कोर्ट ने याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि वन अनुमति के आदेशों (2 फरवरी 2022 और 25 मार्च 2022) को चुनौती नहीं दी गई है। इसके बाद, समिति ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2023 को यह कहकर खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता संशोधित याचिका दायर करके वन अनुमति आदेशों को चुनौती दे सकते हैं और पेड़ कटाई पर पुनः रोक लगाने की मांग कर सकते हैं।

हाई कोर्ट का निर्णय:
संघर्ष समिति ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद नवंबर 2023 में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में संशोधित याचिका दायर की। 2 मई 2024 को हाई कोर्ट ने इस संशोधित याचिका को स्वीकार कर लिया, लेकिन पेड़ कटाई पर रोक लगाने वाली याचिका को यह कहकर निरस्त कर दिया कि पहले भी एक बार ऐसी याचिका खारिज की जा चुकी है। हाई कोर्ट ने इस बार भी याचिका को तकनीकी आधारों पर खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप:
इसे देखते हुए, हसदेव अरण्य संघर्ष समिति ने फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। आज, सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के 2 मई 2024 को दिए गए आदेश को निरस्त कर दिया। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने हाई कोर्ट को निर्देश दिया कि वह याचिका पर एक महीने के भीतर सुनवाई पूरी करे और इसका फैसला गुण-दोष के आधार पर करे। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि एक महीने के भीतर सुनवाई पूरी नहीं होती है, तो याचिकाकर्ता फिर से सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।

मामले में याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्र उदय सिंह ने अपनी दलीलें प्रस्तुत कीं, जबकि उनके साथ अधिवक्ता प्योली भी उपस्थित थीं।

हसदेव अरण्य संघर्ष समिति ने लगातार हसदेव अरण्य क्षेत्र में पेड़ों की कटाई का विरोध किया है। उनका कहना है कि यह क्षेत्र न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां के आदिवासी समुदाय के जीवन और उनकी आजीविका से भी जुड़ा हुआ है।

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here