बिलासपुर। बिल्हा ब्लॉक के उमरिया गांव की श्रीमती गायत्री महर ने ग्रामीण महिलाओं के लिए एक मिसाल कायम की है। स्व सहायता समूह से जुड़ने के बाद उन्होंने न केवल जैविक खेती शुरू की, बल्कि अब वह अपने खेतों में खुद ट्रैक्टर चलाकर बुआई और अन्य खेती के काम भी करती हैं।
इसके साथ ही, गायत्री अपने गांव में “कृषि सखी” के रूप में भी कार्यरत हैं, जहां वे दूसरों को जैविक खेती और कृषि के नए तरीकों के प्रति जागरूक करती हैं।
गायत्री बताती हैं कि पहले उनके पास इतना आत्मविश्वास नहीं था और उनकी खुद की कोई पहचान भी नहीं थी। लेकिन स्व सहायता समूहों—अन्नपूर्णा स्व सहायता समूह और हरियाली आजीविका समूह—से जुड़ने के बाद उनकी ज़िंदगी बदल गई। अब पूरा गांव उन्हें “कृषि सखी” के नाम से पहचानता है। शादी के 7 साल बाद भी, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने मानदेय से ग्रेजुएशन की पढ़ाई भी पूरी कर रही हैं।
गायत्री को छत्तीसगढ़ विज़न डॉक्यूमेंट के लिए अपने विचार रखने का भी मौका मिला, जिसे वे अपने जीवन का गर्व का पल मानती हैं। वह कहती हैं, “बिहान योजना ने मेरे जैसे कई महिलाओं के जीवन में बड़ा बदलाव लाया है। इससे जुड़कर मैं न केवल आत्मनिर्भर बनी हूँ, बल्कि अब मुझे लोग ‘लखपति दीदी’ भी कहते हैं।”
बिहान योजना के तहत स्व सहायता समूहों से जुड़कर ग्रामीण महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं और अपने परिवारों के लिए बेहतर भविष्य की ओर कदम बढ़ा रही हैं। गायत्री महर इसका एक जीवंत उदाहरण हैं, जो अपनी मेहनत और समर्पण से अपने गांव और प्रदेश के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई है।