छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में शुक्रवार को एक बार फिर पेड़ों की कटाई शुरू हो गई, जिससे स्थानीय ग्रामीणों और पर्यावरणप्रेमियों में गहरा आक्रोश फैल गया है।
PKEB फेस 2 कोल ब्लॉक के लिए हजारों पेड़ों को काटा जा रहा है, जबकि ग्रामीणों का विरोध जारी है। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर कई प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया है, जिससे स्थिति और भी तनावपूर्ण हो गई है।
विरोध प्रदर्शन करने वाले हिरासत में
सरगुजा के हसदेव अरण्य क्षेत्र में शुक्रवार को 500 से अधिक कर्मचारी पेड़ों की कटाई में जुट गए। स्थानीय ग्रामीणों को गुरुवार रात ही इस कटाई की भनक लग गई थी, जिसके बाद घाटबर्रा गांव के करीब 150 ग्रामीण जंगल में पहुंच गए। जैसे ही प्रशासन की टीम पहुंची, ग्रामीणों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लेकर दरिमा थाना भेज दिया। वहां से उन्हें एक स्कूल में बिठाकर रखा गया है।
मालूम हो कि परसा ईस्ट-केते-बासेन (PEKB) कोल ब्लॉक के लिए कुल 2711 हेक्टेयर भूमि को कोयला खनन के लिए आवंटित किया गया है, जिसमें से 1898 हेक्टेयर भूमि वन क्षेत्र में आती है। इस क्षेत्र में हसदेव अरण्य के करीब 750 परिवारों को विस्थापित करने की योजना है, जिसके खिलाफ स्थानीय लोग लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं। हसदेव बचाओ आंदोलन के सदस्य आलोक शुक्ला ने बताया कि पुलिस ने विरोध करने वाले लोगों को जबरन उठा लिया है और पेड़ों की कटाई शुरू कर दी गई है।
ग्रामीणों का संघर्ष और सरकारी रवैया
हसदेव अरण्य को बचाने के लिए ग्रामीण 2 अक्टूबर 2022 से आंदोलनरत हैं। वे अपनी जमीन, जंगल और जीविका की रक्षा के लिए निरंतर संघर्ष कर रहे हैं। हाल ही में मुख्यमंत्री ने भी यह दावा किया था कि उनकी सरकार ने किसी प्रकार की सहमति नहीं दी है, बावजूद इसके पेड़ों की कटाई का आदेश जारी हो गया।
राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित इस कोल ब्लॉक में पिछले कुछ वर्षों में लाखों पेड़ काटे जा चुके हैं। सितंबर 2022 में 43.6 हेक्टेयर भूमि से 8000 पेड़ काटे गए थे, जबकि दिसंबर 2023 में 91.2 हेक्टेयर में 15703 पेड़ काटे गए। पेड़ों की वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लगा था झटका
सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में छत्तीसगढ़ सरकार को हसदेव अरण्य में कोयला खनन की अनुमति दी थी, जिससे इस क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण की चिंताओं को गहरा झटका लगा। भारतीय वन्यजीव संस्थान ने हसदेव अरण्य में खनन पर रोक लगाने की सिफारिश की थी। उसने चेतावनी दी थी कि खनन से इंसान और हाथी के बीच संघर्ष की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हसदेव के जंगलों में खनन का रास्ता साफ हो गया। बावजूद इसके, ग्रामीणों और पर्यावरणविदों ने इसे राज्य के पर्यावरण और स्थानीय समुदायों के हितों के खिलाफ बताया है।