जांच दल की रिपोर्ट- पीडिया में मारे गए 12 लोगों में सिर्फ 2 नक्सली, बाकी तेंदूपत्ता मजदूर 

रायपुर। बीजापुर के पीडिया में हुए मुठभेड़ की जांच करने गई कांग्रेस नेताओं की टीम ने आरोप लगाया है कि 10 मई को हुए मुठभेड़ में पुलिस ने 10 निर्दोष ग्रामीणों को मार डाला। जिन 12 लोगों की मौत हुई है उनमें से 10 निर्दोष ग्रामीण थे। वे तेंदूपत्ता तोड़ने के लिए जंगल गए थे। पुलिस को देखकर वे दहशत में पेड़ों पर चढ़ गए थे, जिन पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दी गईं।
पीडिया में हुए मुठभेड़ की जांच के लिए कांग्रेस ने समिति बनाई थी। आज इस मामले में राजीव भवन में प्रेसवार्ता लेकर प्रदेश अध्युक्ष दीपक बैज ने मीडिया को जानकारी दी। बैज ने कहा कि 10 मई 2024 को हुये इस मुठभेड़ में 12 लोगो की मौत हुई थी। 6 लोग घायल हुए। पुलिस का दावा था कि मारे गये सभी लोग नक्सली थे। लेकिन घटना के बाद ग्राम पीडिया और ईतवार के ग्रामीणों का कहना है कि घटना में मारे गये सभी लोग नक्सली नहीं थे। ग्रामीणों के इस दावे के बाद प्रदेश कांग्रेस ने घटना की वस्तुस्थिति जानने एक जांच दल का गठन किया था जो मौके पर गई तथा ग्रामीणों से बात-चीत कर घटना के संबंध में जानकारी जुटाई।

16 मई को जांच दल सुबह 10 बजे बीजापुर से पीडिया के लिए रवाना हुआ। इसमें संयोजक संतराम नेताम, सदस्यगण मान. विधायक इन्द्रशाह मंडावी, विक्रम मंडावी, जनकलाल ध्रुव, सावित्री मंडावी, रजनू नेताम, शंकर कुडियम एवं छविन्द्र कर्मा शामिल थे। अस्वस्थ होने के कारण पूर्व विधायक देवती कर्मा जांच दल में शामिल नहीं हो पाई।
कांग्रेस जांच दल ने पीड़ित परिवार के परिजन सुक्की कुंजाम, ललिता, अवलम समली, बुधरू राम बारसे, पोदिया, बोदे से अलग-अलग पूछताछ कर ब्यान लिया। उन्होंने बताया कि पीडिया नक्सली मुठभेड़ में मल्लेपल्ली निवासी बुधू ओयाम, पालनार निवासी कल्लू पुनेम, ईतावार निवासी-लक्खे कुजाम, उण्डा छोटू, उरसा छोटू सुक्कू ताती, चैतू कुंजाम, सुनीता कुंजाम, जागो बरसी, पीडिया निवासी सन्नु अवलम, भीमा ओयाम, दुला तामो को पुलिस ने नक्सली बताकर मार दिया। ईत्तावार निवासी कुंजाम गुल्ली, लेखा देवी, कुंजाम जिला, कुंजाम बदरू एवं पीडिया निवासी पोयाम नन्दू को घायल कर दिया। ग्रामीणों ने बताया कि मृतक मल्लेपल्ली निवासी बुधू ओयाम एवं पालनार निवासी कल्लू पूनेम नक्सली गतिविधियों में संघम सदस्य के रूप में कार्य करते थे। शेष मृतक व घायल किसी भी प्रकार के नक्सली गतिविधियों में शामिल नहीं थे। पुलिस ने निर्दोष आदिवासियों को नक्सली बताकर इनाम एवं प्रमोशन लेने के लिए घटना को अंजाम दिया है। घटना की न्यायिक जांच होनी चाहिए।
पेड़ पर चढ़े लोगों पर गोलियां बरसाई
बैज ने कहा कि बीजापुर के थाना-गंगालूर के अतिसंवेदनशील गांव पीडिया व ईतावर के ग्रामीण 10 मई को सुबह करीब 6 बजे पीडिया जंगल में तेंदूपत्ता तोड़ने गए थे। इसी बीच पुलिस बल गश्त करते हुए जंगल पहुंचा। वे लोग पुलिस को देखकर भागने लगे। कुछ लोग पेड़ के ऊपर चढ़ गए। इसी दौरान पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। इसमें 12 लोगों की घटना स्थल पर ही मौत हो गई। शेष 6 लोगों का अभी भी जिला अस्पताल में उपचार चल रहा है।
बैज ने कहा कि पूछताछ से ऐसा प्रतीत होता है कि वास्तव दो लोगों को छोडकर सभी मृतक व घायल लोग गांव में सामान्य जीवन यापन करते थे जिनको पुलिस ने नक्सली बताकर फर्जी मुठभेड़ में मारा है। ग्रामीणों की शिकायतें बेहद ही गंभीर और संवेदनशील है। आरोप पुलिस पर लगे हैं। आरोपों को गंभीरता को देखते हुए यह आवश्यक है कि इस मामले की उच्चस्तरीय निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए। कांग्रेस पार्टी की मांग है कि उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश की निगरानी में इस मुठभेड़ की जांच कराई जाए।
बैज ने कहा कि कांग्रेस शांति बहाली के सभी संवैधानिक और कानूनी प्रयासों में राज्य सरकार के साथ खड़ी है। सुरक्षा बालों की कार्रवाई में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी भी निर्दोष की हत्या नहीं हो। बस्तर के आदिवासियों की जान माल की कीमत पर कोई भी समझौता कांग्रेस पार्टी को मंजूर नहीं है।
झीरम मामले की जांच नहीं हो रही-बैज
बैज ने कहा कि झीरम में अभी तक हुई किसी भी जांच में घटना के राजनैतिक षड़यंत्र की दिशा में कोई जांच नहीं हुई। न्यायिक जांच आयोग के कार्यकाल को जब कांग्रेस सरकार ने बढ़ाया तथा जांच के दायरे में घटना के षड़यंत्र को जोड़ा तब तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक हाईकोर्ट से स्टे लेकर आ गये।
बैज ने सवाल किया कि भाजपा झीरम की जांच रोकना क्यों चाहती है? कांग्रेस की सरकार बनने के बाद हमारी सरकार ने एसआईटी बनाकर षड़यंत्र की जांच करने का प्रयास किया, तब भी धरम लाल कौशिक एसआईटी की जांच रोकने हाई कोर्ट गए। एनआईए ने इस मामले की जांच बंद कर दिया था। एनआईए ने 24 सितंबर 2014 को अदालत में पहली चार्जशीट दाखिल की, इसके बाद 28 सिंतबर 2015 को सप्लीमेंट्री चार्जशीट पेश की। अर्थात एनआईए ने जांच बंद कर दी थी, लेकिन जैसे ही राज्य सरकार ने एसआईटी का गठन किया एनआईए ने फिर से जांच शुरू कर दी और राज्य की एजेंसी की जांच को बाधित किया। जब तक एनआईए मामले की फाइल राज्य को वापस नहीं करती एसआईटी जांच शुरू नहीं कर सकती थी। कांग्रेस के पूर्ववर्ती राज्य सरकार द्वारा बार-बार मांगे जाने के बावजूद एनआईए ने झीरम की केस फाइल नहीं दी। एनआईए ने भी एसआईटी की जांच को रोकने हाईकोर्ट से स्टे ले लिया, बाद में हाईकोर्ट ने एनआईए के स्टे को खारिज कर दिया। एनआईए हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई जहां सुप्रीम कोर्ट ने 21 नवंबर 2023 को एनआईए की याचिका को खारिज कर दिया। तब तक राज्य में सरकार बदल गयी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राज्य की एसआईटी के जांच के रास्ते खुल गए। बैज ने मांग की है कि राज्य सरकार दरभा थाने में पीड़ित परिवारों की रिपोर्ट के आधार पर एसआईटी की जांच शुरू करें। झीरम मामले के 11 साल पूरे होने के बावजूद पीड़ितों के परिजनो और घायलों को न्याय नहीं मिला है। भाजपा की सरकारों ने हमेशा झीरम की जांच को रोकने का प्रयास किया। झीरम हमले में कई घायलों और पीड़ितों और प्रभावितों तक से अब तक एनआईए ने बयान नहीं लिया गया है। यह आरोप पीड़ित और उनके परिजनों ने ही लगाया है। आखिर किसको बचाने के लिये, किसके इशारे पर जांच की दिशा भटकाई जा रही है? भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को भय है कि झीरम का सच आने से उनके षड़यंत्र बेनकाब हो जायेंगे।
पत्रकार वार्ता में सांसद फूलोदेवी नेताम, जांच कमेटी के सदस्य संतराम नेताम, इंद्र शाह मंडावी, सावित्री मंडावी, वरिष्ठ नेता डॉ. शिवकुमार डहरिया, प्रभारी महामंत्री मलकीत सिंह गैदू, प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला, गुरुमुख सिंह होरा, शकुन डहरिया, वरिष्ठ प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर, दीपक मिश्रा, सुबोध हरितवाल व सुरेंद्र वर्मा उपस्थित थे।

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