बिलासपुर। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर अचानकमार टाइगर रिजर्व (एटीआर) में शिक्षा विद प्रोफेसर डॉ. पी.डी. खेड़ा (प्रभुदत्त खेड़ा) को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस अवसर पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया और प्रतिमा के इर्द-गिर्द साफ-सफाई की गई। इस आयोजन में स्थानीय लोग, छात्र और अभयारण्य के कर्मचारी शामिल हुए।
यह भी पढ़ें- बघेल ने प्रो. खेरा को दिया नये साल का तोहफा, दिये स्कूल के लिए 20 लाख रुपए , छपरवा आने का निमंत्रण भी स्वीकार किया
डॉ. पी.डी. खेड़ा का योगदान: डॉ. पी.डी. खेड़ा, जिन्हें सभी ‘डॉक्टर साहब’ के नाम से जानते हैं, दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रतिष्ठित शिक्षा विद थे। उन्होंने अपना जीवन दो दशक से अधिक समय तक अचानकमार के गांव लमनी में बिताया और अभयारण्य के आदिवासियों विशेषकर बच्चों की सेवा की।
यह भी पढ़ें- बिलख उठा अचानकमार अभयारण्य अपने बाबा को खोने के बाद, पंचतत्व में विलीन हुए प्रो. खेरा
यह भी पढ़ें- पितृपक्ष में पितृ पुरुष का उठ जाना….।
यह भी पढ़ें- लमनी में प्रो. खेड़ा के लिए श्रद्धांजलि सभा, सैकड़ों बैगा आदिवासियों सहित शहर के लोग शामिल हुए
यह भी पढ़ें- प्रो. खेरा की दृष्टि को समझना आदिवासी समाज को बेहतर जिंदगी देने के लिये बहुत जरूरी
यह भी पढ़ें- 35 वर्ष तक बैगा आदिवासियों की सेवा करने वाले ‘दिल्ली वाले साहब’ प्रो. खेरा का अपोलो में निधन
डॉ. खेड़ा की प्रेरणादायक जीवन यात्रा: डॉ. खेड़ा ने अपने शिक्षण करियर की शुरुआत दिल्ली विश्वविद्यालय से की थी, लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने अचानकमार के गांव लमनी का रुख किया, फिर यहीं के होकर रह गए। उन्होंने अचानकमार के आदिवासियों और बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल जंगल को पैदल नापते हुए की। शिक्षा की चिंता की। गरीबों के लिए संचालित योजनाओं का लाभ आदिवासी परिवारों को दिलाया।
गुरु पूर्णिमा का आयोजन: गुरु पूर्णिमा के अवसर पर डॉ. खेड़ा की प्रतिमा के चारों ओर सफाई अभियान चलाया गया, जिसमें वन कर्मियों, छात्रों और स्थानीय लोगों ने हिस्सा लिया। सभी ने मिलकर प्रतिमा को सजाया और माल्यार्पण किया। इस अवसर पर डॉ. खेड़ा के योगदानों को याद करते हुए उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की। उन्होंने याद किया कि डॉक्टर साहब ने कैसे हमारे जीवन में बदलाव लाया। हमें आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास का पाठ पढ़ाया।