बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मृतक महिला द्वारा मजिस्ट्रेट के सामने लिखे गए बयान को वैध मृत्यु पूर्व कथन मानते हुए निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा है। इस फैसले के तहत राजकुमार बंजारे को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 के तहत दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।

क्या है मामला?

यह घटना 19 दिसंबर 2016 को महासमुंद जिले के नवापारा अचारीडीह की है, जहां राजकुमार बंजारे की पत्नी ओमबाई बंजारे आग में झुलस गई थी। शुरू में पीड़िता ने बयान दिया था कि वह स्टोव जलाते समय हादसे का शिकार हुई, लेकिन बाद में अस्पताल में दिए गए तीसरे बयान में उसने अपने पति को जिम्मेदार ठहराया

तीन अलग-अलग बयान, अदालत ने किसे माना सही?

पीड़िता ने महासमुंद के सरकारी अस्पताल में दिए गए पहले दो बयानों में खुद को जलने का हादसा बताया, लेकिन जब उसे रायपुर के डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल में भर्ती कराया गया, तो उसने स्पष्ट रूप से अपने पति पर प्रताड़ना और आग लगाने का आरोप लगाया

हाईकोर्ट ने माना कि तीसरा बयान, जो रायपुर में अतिरिक्त तहसीलदार के सामने दर्ज किया गया था, सबसे विश्वसनीय है। अदालत ने कहा कि यह बयान मृतका की लिखित रिपोर्ट और देहाती नालिशी (अस्पताल में दर्ज अनौपचारिक शिकायत) से मेल खाता है, जिससे यह साबित होता है कि राजकुमार बंजारे ही घटना के लिए जिम्मेदार था

हाईकोर्ट का फैसला

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने आरोपी की अपील खारिज कर दी और निचली अदालत द्वारा दी गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा। साथ ही, 15 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया

बचाव पक्ष का तर्क खारिज

बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि तीन मृत्यु पूर्व बयानों में विसंगतियां हैं, जिससे संदेह पैदा होता है। लेकिन हाईकोर्ट ने माना कि मृतका का अंतिम बयान सबसे सटीक और विश्वसनीय था, जिसे देहाती नालिशी से भी समर्थन मिला।

इस फैसले ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 32(1) की पुष्टि करते हुए मृतका के लिखित बयान को वैध मृत्यु पूर्व कथन के रूप में स्वीकार करने की कानूनी स्थिति को मजबूत किया है

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