सूरजपुर, छत्तीसगढ़ के एक महत्वपूर्ण मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बिना शादी के जन्मे पुत्र को माता-पिता का वैध पुत्र घोषित किया है। कोर्ट ने परिवार न्यायालय के फैसले को खारिज करते हुए पुत्र को उसके सभी अधिकारों का हकदार ठहराया। इस फैसले ने परिवार न्यायालय के निर्णय को ‘विकृत’ और ‘कानून के अनुरूप नहीं’ बताया है।
फैमिली कोर्ट का फैसला पलटा
सूरजपुर जिले के एक निवासी ने फैमिली कोर्ट में अपने माता-पिता के खिलाफ सिविल वाद दायर किया था, जिसमें उसने अपनी पहचान और अधिकारों की मांग की थी। फैमिली कोर्ट ने इस याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 की धारा 34 के तहत संपत्ति के अधिकारों की घोषणा वैवाहिक पक्ष के दायरे में नहीं आती। इस फैसले के खिलाफ पुत्र ने हाईकोर्ट में अपील की।
प्यार, इनकार और संघर्ष की कहानी
मामला कुछ ऐसा था कि प्रतिवादी 1 का अपने पड़ोसी प्रतिवादी 2 के साथ प्रेम संबंध था। जब प्रतिवादी 2 गर्भवती हुई, तो प्रतिवादी 1 ने गर्भपात कराने का दबाव डाला, लेकिन प्रतिवादी 2 ने इसे मानने से इनकार कर दिया। नतीजतन, 12 नवंबर 1995 को पुत्र का जन्म हुआ। बाद में, प्रतिवादी 2 ने पुत्र के साथ फैमिली कोर्ट में भरण-पोषण का मामला दायर किया, जिसे प्रतिवादी 1 ने अस्वीकार कर दिया।
पुत्र के संघर्ष ने बदली कहानी
अप्रैल 2017 में जब पुत्र बीमार पड़ा और आर्थिक संकट में आ गया, तो उसे अपने अधिकारों के लिए कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पुत्र को उसके माता-पिता का वैध पुत्र घोषित कर दिया और उसे उसके सभी कानूनी अधिकारों का हकदार ठहराया।