महात्मा गांधी ने शुरू की थी अपने गुरु राजचंद्र के लिए ये पर्व मनाने की परंपरा
रायपुर। छत्तीसगढ़ में गुरु-शिष्य की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, इस वर्ष मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की पहल पर सभी स्कूलों में गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाने का निर्णय लिया गया है। इसका उद्देश्य स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों और उनके शिक्षकों के बीच मधुर संबंध बनाना है और गुरु-शिष्य के बीच अपनत्व और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का संचार करना है।
छत्तीसगढ़ शासन के स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा सभी स्कूलों में 22 जुलाई से गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाने के निर्देश दिए गए हैं। इस आयोजन में गुरुजनों और स्कूली बच्चों के अलावा स्थानीय जनप्रतिनिधि भी शामिल होंगे। कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वंदना और गुरु वंदना से होगी। स्कूली बच्चों द्वारा जीवन में गुरुओं के महत्व पर व्याख्यान दिए जाएंगे। वरिष्ठ शिक्षक अपने उत्कृष्ट विद्यार्थियों के बारे में यादगार पलों का स्मरण करेंगे और स्कूली बच्चे भी अपने गुरुओं के साथ हुए अनेक प्रसंगों की चर्चा करेंगे। निबंध लेखन और कविता पाठ का भी आयोजन होगा।
छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद पहली बार स्कूलों में गुरु पर्व मनाने का आयोजन हो रहा है। इस पहल को लेकर माना जा रहा है कि इससे शिक्षकों में सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना आएगी और बच्चों में गुरुओं के प्रति सम्मान के साथ-साथ बेहतर चरित्र निर्माण और समर्पण की भावना जागेगी। इससे राज्य में बच्चों के लिए उत्कृष्ट शैक्षणिक वातावरण बनाने में भी मदद मिलेगी।
सनातन धर्म में गुरु पूर्णिमा का महत्व
सनातन धर्म में गुरु पूर्णिमा का अत्यधिक महत्व है। यह पर्व आषाढ़ पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है और इसे वेद व्यास के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है। वेद व्यास ने महाभारत और चार वेदों का संपादन किया था, जिसके कारण उन्हें आदिगुरु का स्थान प्राप्त है। इस दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरु-शिष्य परंपरा को मजबूत करता है और ज्ञान के प्रति सम्मान को बढ़ावा देता है। इस दिन विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जिसमें गुरु के महत्व पर प्रकाश डाला जाता है और उनके आशीर्वाद से जीवन को सन्मार्ग पर ले जाने का संकल्प लिया जाता है।
महात्मा गांधी और गुरु पूर्णिमा
महात्मा गांधी ने गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व समझा और इसे अपने जीवन में आत्मसात किया। उन्होंने गुरु पूर्णिमा को अपने आध्यात्मिक गुरु, श्रीमद राजचंद्र, के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मनाना शुरू किया। महात्मा गांधी ने अपने जीवन में गुरु के मार्गदर्शन को सर्वोपरि माना और उनके सिद्धांतों का पालन करते हुए सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चले। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गांधीजी अपने गुरु को स्मरण करते थे और उनके उपदेशों का पालन करने का संकल्प दोहराते थे। उनके इस आदर्श ने कई लोगों को गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व को समझने और उसका अनुसरण करने के लिए प्रेरित किया।