एडवोकेट जनरल व विधि के प्राध्यापकों ने दी सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन की जानकारी

बिलासपुर। राज्य के 200 पुलिस अधिकारियों की एक कार्यशाला में गिरफ्तारी को लेकर सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ के दिशानिर्देशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए कार्यशाला रखी गई। सात साल से कम सजा वाले मामलों में हो रही अनावश्यक गिरफ्तारी को रोकने में इससे मदद मिलेगी।

प्रार्थना सभा भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में महाधिवक्ता प्रभुल्ल एन भारत, अतिरिक्त महाधिवक्ता आशीष शुक्ला, उप महाधिवक्ता डॉ. सौरभ पांडेय एवं हिदायतुल्लाह लॉ यूनिवर्सिटी के सहायक प्राध्यापक प्रमुख वक्ता थे। उक्त वक्ताओं ने न्यायालय के निर्देशों की विस्तार से बिंदुवार जानकारी दी। प्रश्नोत्तरी के माध्यम से भी जिज्ञासाओं का समाधान किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पुलिस महानिरीक्षक डॉ संजीव शुक्ला ने कहा कि गिरफ़्तारी के संबंध में पुलिस के द्वारा न्यायालयों के दिशानिर्देशों का परिपालन वांछित है। इस संबंध में पुलिस अफ़सरों के लीगल नॉलेज एवं संवेदनशीलता में वृद्धि के लिए इस सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। सेमिनार का मुख्य उद्देश्य पुलिस अफ़सरों को गिरफ़्तारी के संबंध में नवीनतम दिशानिर्देशों से परिचित कराना एवं इन दिशानिर्देशों का संकलन एक पुस्तिका के रूप में करना है। यहां प्रशिक्षण प्राप्त पुलिस अधिकारी मास्टर ट्रेनर के रूप में एक माह के अंदर अपने जिले के प्रत्येक विवेचक को इस विषय में प्रशिक्षित करेंगे। महाधिवक्ता उच्च न्यायालय भारत ने बताया कि उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों के दिशानिर्देशों का मुख्य उद्देश्य नागरिकों के जीवन एवं स्वतंत्रता की रक्षा करना है। अतिरिक्त महाधिवक्ता शुक्ला ने इस अवसर पर कहा कि उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों के दिशानिर्देशों के पीछे मंशा को समझने की ज़रूरत है। दंड प्रक्रिया की संहिता धारा 41(1)(बी) में दिए गए प्रावधानों का परिपालन ही अर्नेश कुमार के केस में बताया गया है, जिसे विवेचना संबंधी समस्त प्रकरणों में पालन करने की आवश्यकता है। उप महाधिवक्ता सौरभ कुमार पाण्डे ने कहा कि क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की दिशा अब साक्ष्य संकलन पर है। उन्होंने गिरफ़्तारी के लिए डाक्यूमेंटेशन की उत्कृष्टता पर जोर दिया। डॉ राजपूत ने महिलाओं एवं बच्चों के संबंध में न्यायालय के द्वारा समय-समय पर जारी दिशा निर्देशों से अवगत कराया। पुलिस अधीक्षक रजनेश सिंह ने आशा जताई कि पुलिस अफ़सर इस सेमिनार से अदालती दिशानिर्देशों से परिचित होकर अपने ज़िले के विवेचकों को ट्रेनिंग देंगे। उन्होंने समस्त अतिथियों को स्मृति चिन्ह प्रदान कर उनका आभार व्यक्त किया गया । कार्यक्रम का संचालन अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अर्चना झा ने किया । सभी अधिकारियों को उक्त दिशा निर्देशों की बुकलेट भी प्रदान की गई।

क्या हैं सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश?

दहेज प्रताड़ना की धारा 498 ए से संबंधित अर्नेश कुमार विरुद्ध बिहार राज्य एवं इसी तरह के अन्य मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने सात साल से कम सजा वाले मामलों में गिरफ्तारी को अपवाद बताते हुए सभी राज्यों को दिशा निर्देश जारी किया था। अदालत ने पाया था कि इस धारा का दुरुपयोग भी किया जा रहा है। सन् 2014 के आदेश का पालन नहीं होने पर सन् 2023 में पुनः शीर्ष अदालत ने दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन करने कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ मामलों में इस गाइडलाइन का पालन नहीं करने पर विवेचना अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति भी दी है। ये दिशानिर्देश इस प्रकार हैः –

  1. सभी राज्य सरकारें अपने पुलिस अधिकारियों को निर्देश दें कि आईपीसी की धारा 498ए के तहत मामला दर्ज होने पर स्वचालित रूप से गिरफ्तारी न करें, बल्कि सीआरपीसी की धारा 41 के तहत निर्धारित मापदंडों के तहत गिरफ्तारी की आवश्यकता के बारे में खुद को संतुष्ट करें।
  2. सभी पुलिस अधिकारियों को धारा 41(1)(बी)(2) के तहत निर्दिष्ट उप-खंडों वाली एक चेक सूची प्रदान की जानी चाहिए।
  3. पुलिस अधिकारी विधिवत दायर की गई जांच सूची को अग्रेषित करेगा और आगे की हिरासत के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष अभियुक्त को पेश करते समय उन कारणों और सामग्रियों को प्रस्तुत करेगा जिनके कारण गिरफ्तारी की आवश्यकता हुई।
  4. अभियुक्त की हिरासत को अधिकृत करते समय मजिस्ट्रेट उपरोक्त शर्तों के अनुसार पुलिस अधिकारी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का अवलोकन करेगा और उसकी संतुष्टि दर्ज करने के बाद ही मजिस्ट्रेट हिरासत को अधिकृत करेगा।
  5. किसी अभियुक्त को गिरफ़्तार न करने का निर्णय, मामले की शुरुआत की तारीख से दो सप्ताह के भीतर मजिस्ट्रेट को भेजा जाएगा, जिसकी एक प्रति मजिस्ट्रेट को दी जाएगी, जिसे जिले के पुलिस अधीक्षक द्वारा दर्ज किए जाने वाले कारणों से बढ़ाया जा सकता है।
  6. सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत उपस्थिति का नोटिस मामले की शुरुआत की तारीख से दो सप्ताह के भीतर आरोपी को दिया जाना चाहिए, जिसे जिले के पुलिस अधीक्षक द्वारा लिखित रूप में दर्ज किए जाने वाले कारणों से बढ़ाया जा सकता है।

उपरोक्त निर्देशों का पालन करने में विफलता पर संबंधित पुलिस अधिकारियों को विभागीय कार्रवाई के लिए उत्तरदायी बनाने के अलावा, वे क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार वाले हाईकोर के समक्ष स्थापित की जाने वाली अदालत की अवमानना ​​के लिए दंडित किए जाने के लिए भी उत्तरदायी होंगे।

संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा उपरोक्त कारण दर्ज किए बिना हिरासत को अधिकृत करने पर संबंधित उच्च न्यायालय द्वारा विभागीय कार्रवाई की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2023 में दोबारा सभी राज्यों के उच्च न्यायालयों और पुलिस प्रमुखों को आठ सप्ताह के भीतर इन दिशानिर्देशों वाली अधिसूचनाएं और सर्कुलर जारी करने का निर्देश देने के अलावा, अर्नेश कुमार दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करने के महत्व पर जोर दिया।

ये टिप्पणियां झारखंड हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द करते हुए की गईं, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के तहत विभिन्न प्रावधानों के तहत अपराधों के आरोपी पति को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया गया था। अग्रिम जमानत खारिज कर दी गई, लेकिन उच्च न्यायालय ने आरोपी पति को आत्मसमर्पण करने और बाद में नियमित जमानत लेने का भी निर्देश दिया।

आदेश में कहा गया कि “एक बार जब आरोप पत्र दायर किया जाता है और कम से कम अभियुक्तों की ओर से कोई बाधा न हो तो अदालत को अपराधों की प्रकृति, आरोपों और उनके द्वारा किए जाने वाले अपराधों की अधिकतम सजा को ध्यान में रखकर बाकायदा जमानत देनी चाहिए। हालांकि अदालत ने ऐसा नहीं किया, बल्कि स्वचालित रूप से खारिज कर दिया और अपीलकर्ता को आत्मसमर्पण करने और ट्रायल कोर्ट के समक्ष नियमित जमानत लेने का निर्देश दिया। उच्च न्यायालय ने इस तरह का आकस्मिक रवैया अपनाकर गलती की, इसलिए विवादित आदेश कायम नहीं रह सकता और इसे रद्द किया जाता है।”

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने लगाया एक लाख का जुर्माना

गिरफ्तारी से पहले धारा 41 (1) ए का पालन नहीं करने पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य सरकार पर एक लाख रुपये की जुर्माना लगाया है। यह रकम पीड़ित याचिकाकर्ता को दी जाएगी।

भिलाई के युवक दीपक त्रिपाठी की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बताया गया कि दुर्ग की महिला थाना प्रभारी व स्टाफ ने उनके खिलाफ दहेज प्रताड़ना के आरोप में आईपीसी की धारा 498 के तहत अपराध दर्ज कर लिया, जबकि युवती ने धारा 164 के तहत दर्ज अपने बयान में बताया था कि वह कभी ससुराल नहीं गई और उसकी शादी की जानकारी घर में किसी को नहीं है। कोविड काल में उसे 77 दिन जेल में रहना पड़ा। पुलिस ने उसकी जबरन गिरफ्तारी की है, जबकि पहले उसे नोटिस जारी कर बयान दर्ज करना था। पुलिस अधीक्षक और अन्य अधिकारियों से उसने अपनी रिहाई के बाद गिरफ्तारी के लिए जिम्मेदार पुलिस स्टाफ पर कार्रवाई की मांग की लेकिन नहीं की गई। चार साल की सुनवाई के बाद आए फैसले में चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार पर एक लाख रुपये का हर्जाना लगाया है, यह राशि याचिकाकर्ता को दी जाएगी। आदेश में कहा गया कि सात साल से कम सजा वाले मामलों में पुलिस बिना सूचना दिए व बयान दर्ज किए गिरफ्तारी नहीं कर सकती। बयान दर्ज होने के बाद आवश्यक होने पर ही गिरफ्तारी की जाएगी। पुलिस को गिरफ्तारी की वजह बतानी होगी।

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