बिलासपुर। रायपुर में हुए दुष्कर्म और हत्या के मामले में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने नाबालिग आरोपी के साइकोलॉजिकल टेस्ट दोबारा कराने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि आरोपी का परीक्षण एक से अधिक विशेषज्ञों से कराया जाए और इस प्रक्रिया के बाद ही मामले की सुनवाई की जाए। साथ ही, केस को ट्रायल कोर्ट में वापस भेज दिया है।

विशेषज्ञों की रिपोर्ट पर उठे सवाल:

इस मामले में पहले जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड द्वारा आरोपी का पांच पैमानों पर मनोवैज्ञानिक परीक्षण कराया गया था, जिसमें उसे सामान्य पाया गया। इस रिपोर्ट के आधार पर बोर्ड ने आरोपी के खिलाफ बाल न्यायालय में केस चलाने के निर्देश दिए। हाई कोर्ट में इस निर्णय के खिलाफ अपील की गई थी, जिसमें जस्टिस प्रार्थ प्रतीम साहू की बेंच ने बोर्ड को निर्देश दिया कि वह एक से अधिक मनोवैज्ञानिकों की रिपोर्ट के आधार पर ही अंतिम निर्णय ले।

सरकारी पक्ष का तर्क:

राज्य सरकार ने नाबालिग आरोपी की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने जेजे एक्ट 2015 की धारा 15 और जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) मॉडल रूल्स 2016 के नियम 10ए के तहत परीक्षण किया था। अपराध के समय आरोपी की उम्र 17 वर्ष से अधिक और 18 वर्ष से कम थी, और उसे सामान्य पाया गया था। सरकार ने तर्क दिया कि बोर्ड का मूल्यांकन सही था और इसी आधार पर ट्रायल की अनुमति दी गई थी। हाई कोर्ट ने इस आदेश की समीक्षा की और पुनः परीक्षण के निर्देश दिए।

कोर्ट का निर्देश:

हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को नियमों के अनुसार, नाबालिग आरोपी की मानसिक और शारीरिक क्षमता और अपराध के समय की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर प्रारंभिक मूल्यांकन करना होगा। इसके बाद ही आरोपी के खिलाफ अदालती कार्यवाही आगे बढ़ाई जा सकती है।

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