छात्राओं को राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने दी मानवाधिकार सुरक्षा के कानूनों की जानकारी
भारत के संविधान में मानव अधिकार का उल्लेख कहीं नहीं है, परंतु मूलभूत अधिकार दिए गए हैं, जैसे जीने का अधिकार। सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार अनुच्छेद 21 के अंतर्गत है। अत्याचार का प्रतिकार करना उसका प्रतिरोध करना जरूरी है। यदि किसी के साथ मारपीट की जाती है तो जीने के अधिकार का हनन होता है। ऐसा होता दिखे तो सबसे पहले थाने जाकर रिपोर्ट दर्ज कराएं।
ये बातें राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव विवेक कुमार तिवारी ने अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर पं. देवकीनंदन दीक्षित कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में रखे गए विशेष विधिक साक्षरता शिविर में बताई।
छात्राओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि संविधान में मानव अधिकारों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त व्यवस्था की गई है। लोगों के मानवीय अधिकारों की सुरक्षा के लिए निर्देशन में राज्य तथा जिला विधिक सेवा प्राधिकरण कार्यरत हैं। ऐसे व्यक्ति जो महिला एवं बच्चे अनुसूचित जाति एवं जनजाति के हैं, तथा कहीं अभिरक्षा में भी हैं, कैंसर या एचआईव्ही पीडि़त है, वरिष्ठ नागरिक हैं या थर्ड जेण्डर समुदाय हैं, श्रमिक हैं या ऐसे व्यक्ति जिनकी सालाना आमदनी डेढ़ लाख रुपये से कम है, विधिक सहायता पा सकते हैं। न्यायालयों में लंबित या पेश करने के प्रकरणों में अधिवक्ता की नियुक्ति तथा कोर्ट फीस एवं मामले में लगने वाले अदालती व्यय का भुगतान किया जाता है। विधिक सलाह के लिए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण अथवा तालुक विधिक सेवा समिति से संपर्क कर निःशुल्क विधिक सहायता एवं सलाह प्राप्त किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुच्छेद 7 के अनुसार 10 दिसम्बर 1998 से मानव अधिकार दिवस मनाया जाता है।
कार्यक्रम में उप सचिव दिग्विजय सिंह, अवर सचिव श्वेता श्रीवास्तव व राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अन्य सदस्य व पदाधिकारी उपस्थित थे।