अयोध्या से सटे संसदीय क्षेत्र फैजाबाद से भाजपा के दिग्गज लल्लू सिंह चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन उन्हें समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद ने 54,000 से अधिक मतों से हरा दिया। नौ बार विधायक रहे और सपा के संस्थापक सदस्य प्रसाद करीबी मुकाबले के बाद विजयी हुए।
द इकॉनामिक टाइम्स ने द टाइम्स ऑफ इंडिया के हवाले एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसमें बताया गया है कि दलित उम्मीदवार प्रसाद की जीत इस बात को दर्शाती है कि उन्हें इस क्षेत्र के 2.5 लाख से ज़्यादा पासियों का समर्थन मिला । प्रसाद को सामान्य सीट से चुनाव लड़ाने का सपा का फ़ैसला सफल रहा और अयोध्या में भाजपा के राम मंदिर के मुद्दे पर पानी फिर गया।
भाजपा ने चुनाव के दौरान पूरे देश में मंदिर कार्ड पर बहुत ज़्यादा भरोसा किया, लेकिन भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्या ने पार्टी के ख़िलाफ़ वोट किया। फैजाबाद निर्वाचन क्षेत्र, जहां अयोध्या स्थित है, में पांच में से चार विधानसभा क्षेत्रों में हार ने भाजपा के अभियान की अस्वीकृति को रेखांकित किया।
रिपोर्ट के मुताबिक 1957 के बाद पहली बार है जब फैजाबाद से अनुसूचित जाति का कोई प्रतिनिधि संसद में चुना गया है। प्रसाद के अनुसार, राम मंदिर के नाम पर वोट हासिल करने की भाजपा की कोशिशों ने स्थानीय लोगों को गुमराह किया, जिन्हें एहसास हुआ कि उन्हें धोखा दिया जा रहा है।
मंदिर निर्माण के बाद अयोध्या और उसके आसपास के इलाकों में विकास दिखाने के भाजपा के प्रयासों के बावजूद, यह कहानी उल्टी साबित हुई। शहर के परिवर्तन और विकास ने निवासियों के लिए कई तरह की चुनौतियों को जन्म दिया, जिसमें बैरिकेड्स, पुलिस की मौजूदगी, ट्रैफ़िक डायवर्जन और नौकरशाही का दबदबा जैसी समस्याएं शामिल हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीणों में असुरक्षा की भावना देखी गई, जबकि शहरी केंद्रों में संपत्ति के लेन-देन को विनियमित किया गया और आगे के विस्तार के लिए भूमि अधिग्रहण अधिसूचनाएं जारी की गईं। भाजपा का स्थानीय नेतृत्व इन बढ़ती चिंताओं से अवगत था, लेकिन उन्हें प्रभावी ढंग से दुरुस्त करने का अधिकार नहीं था।
यह हार समाजवादी पार्टी के नारे “ना मथुरा, ना काशी, अबकी बार अवधेश पासी” में व्यक्त भावना को भी दर्शाती है, जो मतदाताओं में भाजपा की धार्मिक बयानबाजी से हटकर व्यापक सामाजिक-आर्थिक चिंताओं की ओर रुझान को दर्शाती है।

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