वन्यजीवों के लिए पीने के पानी का गर्मी में सही प्रबंधन कर पाना टेढ़ी खीर है। इस बार नवतपा में बारिश नहीं हुई। वैसे भी शुरू में ऊंचे पहाड़ का पानी तेजी से निचले इलाके में बह जाता है। तब वन्यजीवों को छोटे जल कुंड बना कर पानी उपलब्ध कराना आखिरी आसरा होता है। इसे सॉसर (Saucer) कहते हैं। समझ लीजिए चाय पीने वाली तश्तरी का बहुत बड़ा आकार।
छतीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिजर्व ( ATR) में पहली बार है जब सॉसर में इन दिनों पानी भरा है। बड़े और बड़े छोटे प्यासे वन्यजीव अपनी प्यास बुझा रहे हैं। सॉसर में पानी प्यास बुझाने वालों में विशालकाय गौर से लेकर सांप का शिकारबाज सरपेन्ट ईगल शामिल हैं। नन्हीं रॉबिन मैगपाई तो सॉसर के पानी में फुदकती मिली। यह सब सफारी रूट की बात है। बस जब तक बारिश जम कर नहीं बरसती तक सॉसर में टैंकर से पानी भरते रहना बहुत जरूरी है।
यह बताया गया है विशाल काय गौर पहले प्यास लगने पर संध्या 5 बजे के आसपास पानी के किनारे झुंड में पहुंचते थे। लेकिन तेज गर्मी में उनको करीब दोपहर दो बजे तक प्यास लग जाती है और वह ढाई बजे से पानी के लिए पहुंच जाते हैं। गौर पानी 4 बजे तक प्यास बुझा कर वापस लौट जाते हैं। यानि कोई पुराने समय शाम 5 बजे इनको देखने पहुंचें, तो ये मिलने वाले नहीं। बदले समय पर यह झुंडों में कुल सौ भी दिखें तो कम होंगे।
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