जनता की गाढ़ी कमाई को बहा रहा वन विभाग, सिंघवी ने की वापस भेजने की मांग
रायपुर। बारनवापारा अभयारण्य में असम से लाए गए वन भैंसों के चारे और देखभाल पर दो साल में 42 लाख रुपये खर्च कर दिए गए। इन्हें अभयारण्य में खुला भी नहीं छोड़ा जा सकता और न ही कैद में रखकर इनको प्रजनन के लिए उपयोग में लाया जा सकता।
वर्ष 22-23 में दोनों के पौष्टिक आहार, दवाई और अन्य सामग्री पर पर 17 लाख 22 हजार 896 रुपए खर्च किये गए थे। बाद में अप्रैल 2023 में असम से चार मादा सब-एडल्ट वन भैंसा और लाई गई, इस प्रकार संख्या छ: हो गई। वर्ष 23-24 में उनके भोजन, घास, बीज रोपण, चना, खरी, पैरा कुट्टी, दलिया और रखरखाव पर 24 लाख 94 हजार 474 खर्च किए गए।
असम से वन भैंसों को छत्तीसगढ़ लाने का शुरू से विरोध कर रहे रायपुर के वन्य जीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) से पूछा है कि इनका छत्तीसगढ़ में क्या करेंगे? क्या हर साल जनता की गाढ़ी कमाई का 25 लाख खर्च होता रहेगा ? वन विभाग की अदूरदर्शिता का परिणाम जनता भोग रही है। इन्हें वापस असम भेज देना चाहिए।
असम से लाई गई मादा वन भैसों को छत्तीसगढ़ के नर वन भैंसे से क्रॉस कर कर प्रजनन कराया जाना था। परंतु छत्तीसगढ़ में शुद्ध नस्ल का सिर्फ एक ही वन भैंसा छोटू है जो कमजोर व बूढ़ा है उसकी उम्र लगभग 24 वर्ष है। वन भैंसों की अधिकतम उम्र 25 वर्ष होती है। बुढ़ापे के कारण छोटू से प्रजनन कराना संभव नहीं है। जबरदस्ती करने पर छोटू की मौत भी हो सकती है। इस समय वह उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व के बाड़े में बंद है।
असम से एक नर और पांच मादा वन भैंसे लाए गए हैं। अगर इन्हें बारनवापारा अभ्यारण में छोड़ दिया जाता है तो एक ही पिता से नस्ल वृद्धि होगी जिससे जीन पूल खराब होगी। उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व में कई क्रॉस ब्रीड भैंसे विचरण करते हैं। वहां छोड़ा जाता है तो उनसे क्रॉस ब्रीड के बच्चे होंगे और आने वाले समय में असम के वन भैसों की नस्ल शुद्धता ख़त्म हो जाएगी।