जू प्रबंधन ने किडनी फेल होने की बात कही, एक सप्ताह से चल रहा था उपचार

बिलासपुर। कानन पेंडारी जू में वन्य जीवों के मौत का सिलसिला नहीं थम रहा है। बाघिन रंभा से पिछले साल जन्मी शावक रश्मि की मौत हो गई। कानन पेंडारी प्रबंधन का कहना है कि वह चार दिन से बीमार थी और किडनी फेल होने के कारण मौत हो गई।

बाघिन रश्मि 6 दिनों से बीमार चल रही थी। उसके पेट में पानी भर गया था और वह हाईड्रो नेफ्रोसिस से पीड़ित होने के कारण यूरिन नहीं कर रही थी। पिछले कुछ समय से देखा जा रहा है कि वन्यजीवों के बीमार पड़ने के बाद कानन पेंडारी उन्हें बचा नहीं पाता है और वे मौत के मुंह में चले जाते हैं। कानन पेंडारी के अधिकारियों का कहना है कि रश्मि के उपचार के लिए जू अथॉरिटी ऑफ इंडिया से भी परामर्श किया गया था।

गौरतलब है कि कानन पेण्डारी जू में 17 अप्रैल 2022 की रात को मादा बाघिन-रंभा ने 4 शावकों को जन्म दिया था। इन चार शावकों में एक नर एवं तीन मादा शामिल थे। वन मंत्री मो. अकबर ने 30 जुलाई 2022 को कानन पेंडारी का दौरा किया था। उनकी उपस्थिति में चारों शावकों का नामकरण किया गया था। इनमें नर शावक का नाम मितान और तीन मादा शावकों का आनंदी, रश्मि तथा दिशा नाम रखा गया।

बीते 20 फरवरी को कानन पेंडारी जू में चार दिन पहले ही रेस्क्यू करके लाए गए तेंदुए की मौत हो गई थी। इसके पहले बीते साल अचानकमार से रेस्क्यू कर लाई गई जख्मी बाघिन रजनी की मौत हो गई थी। इसके बाद चेरी बाघिन की भी मौत हो गई। पिछले साल फरवरी में एक गर्भवती मादा हिप्पो और एक भालू कुश की भी मौत हो गई थी। एक लायनेस मौसमी ने प्रजनन के दौरान दम तोड़ दिया था। यह अप्रैल की घटना है। एक शुतुरमुर्ग ने भी यहां दम तोड़ दिया था। साल 2022 में करीब हर माह किसी न किसी वन्यजीव की मौत हुई। हर बार अधिकारी इन मौतों को लेकर गोल-मोल जवाब देते हैं। सन् 2019 में यहां एक सफेद टाइगर की मौत हो गई थी। इसे वन विभाग के अधिकारी कभी सांप काटने की घटना बता रहे थे तो कभी हार्ट अटैक की। कुछ साल पहले एक साथ 22 चीतल मृत पाये गए थे। इस घटना में तब के कुछ जनप्रतिनिधियों की भूमिका संदिग्ध बताई जा रही थी। इन सामूहिक मौतों का आज तक कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया। खुद वन मंत्री जब पिछले साल बिलासपुर प्रवास पर आए थे तो इन मौतों को लेकर किए गए सवालों से खीझ गए थे और कहा था कि कानन पेंडारी के अफसरों और पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर भरोसा तो करना ही पड़ेगा।

कानन पेंडारी में विभिन्न प्रजातियों के करीब 600 जीव हैं लेकिन इनकी देखभाल की जिम्मेदारी केवल एक डॉक्टर पर है। यहां के प्रबंधन में वन्य जीवों के साथ आत्मीय संबंध रखने वाले और उनकी सेहत पर गंभीरता से निगरानी रखने वाले पहले की तरह स्टाफ नहीं है।

लगातार हो रही मौतों को लेकर वन्यजीव प्रेमी व वाइल्डलाइफ बोर्ड के पूर्व सदस्य प्राण चड्ढा ने कहा कि जू में अफसरों और कर्मचारियों की फौज है। पर उससे कुछ नहीं होता। पिंजरे में बंद जीव को खुराक के अलावा अपनत्व की जरूरत होती है। यहां एक डिप्टी रेंजर ठाकुर ने इसकी मिसाल बनाई थी। वह क्रोकोडाइल को बुलाता था तो वह दूर से तैरता आ जाता था। पीठ पर उक्त डिप्टी रेंजर वह हाथ न फेरे तो शेर व्याकुल हो जाता था। पर उसके रिटायरमेंट बाद वन्यजीवों के दिल कोई इस तरह जीत नही सका। यहां जीवों से जुड़ाव रखने वाला अधिकारी जरूरी है। वन्यजीवों की सेहत, साफ सफाई और खुराक की निगरानी लिए पहले एक समिति का प्रावधान था। शायद बरसों से उसकी कोई बैठक नहीं हुई है।
यदि कोई वह जीव केज में लापरवाही से मर जाता है तो वह जंगल में होने वाले शिकार से अधिक दुखद है। इसकी जवाबदेही और तय होना जरूरी है। वरना सिलसिला थमने वाला नहीं।

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